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Saturday, June 14, 2025
Entertainment

Bhool Chuk Maaf Movie Review: थिएटर की बजाय OTT पर होती तो शायद माफ होती भूल-चूक

Bhool Chuk Maaf Movie Review
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रेटिंग: 1/5
रिलीज: 23 मई 2025
कलाकार: राजकुमार राव, वामिका गब्बी, सीमा पाहवा, संजय मिश्रा, जाकिर हुसैन, रघुवीर यादव, इश्तियाक खान, विनीत कुमार, नलनीश नील
लेखक-निर्देशक: करण शर्मा
निर्माता: दिनेश विजन

काशी, जहां हर सांस में महादेव बसते हैं, उसकी पवित्र गलियों को मुंबई के स्टूडियो सेट्स में ढूंढने की कोशिश है भूल चूक माफ। लेकिन ये कोशिश ऐसी है जैसे किसी ने गंगा में डुबकी लगाने की जगह बाल्टी में नहाने की ठान ली हो। फिल्म का प्रचार भले ही जोर-शोर से हुआ, लेकिन कहानी दो ब्राह्मण परिवारों की ऐसी अटपटी दुनिया रचती है, जहां पंडित जी छत पर लौंग तड़के वाली खीर पकाते हैं और उनका बेटा गाय को पूरनपोली खिलाने की बात करता है। बनारस का 40 साल का नायक, जो 25 का दिखने की कोशिश में है, रिश्वत देकर सरकारी नौकरी पा लेता है। काशी में रिश्वत का धंधा? निशाना तो साफ है, लेकिन निगाहें कहीं और भटक रही हैं।

कहानी: टाइम लूप में फंसी बेसिर-पैर की दास्तान

भूल चूक माफ की कहानी नेकेड और ग्राउंडहॉग डे से प्रेरित टाइम लूप कॉन्सेप्ट पर टिकी है। राजकुमार राव का किरदार अपनी शादी से ठीक एक दिन पहले की तारीख में फंस जाता है, क्योंकि उसने शिवजी से नेक काम की मन्नत मांगी थी। कहानी का ये ट्विस्ट इंटरवल के पास आता है, लेकिन तब तक ट्रेलर वाली कहानी—एक लड़का-लड़की का भागना, पुलिस का थाने ले जाना, और दो महीने में सरकारी नौकरी का वादा—दर्शकों को बोर कर चुकी होती है। यूपी पुलिस और बेटियों के बाप को ऐसा भरोसा क्यों, ये फिल्म का सबसे बड़ा रहस्य है।

अभिनय: मजबूरी का नाम राजकुमार राव

राजकुमार राव हर बार की तरह पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन 40 की उम्र में 25 का दिखना और बेतुके संवादों में ‘बकैती’ ठूंसना उन्हें भी नहीं बचा पाता। वामिका गब्बी का किरदार सशक्त होने की कोशिश करता है, लेकिन निर्देशक से ‘ट्यूनिंग’ न बनने की वजह से उनका एक भी ढंग का क्लोजअप नहीं दिखता। सीमा पाहवा अपने छोटे से रोल में चमकती हैं, लेकिन जाकिर हुसैन, रघुवीर यादव जैसे दिग्गजों को बेकार कर दिया गया। बाकी सहायक कलाकारों को भी कोई खास मौका नहीं मिलता, क्योंकि लेखक-निर्देशक करण शर्मा की स्क्रिप्ट ही कमजोर है।

तकनीकी पक्ष: काशी ड्रोन से ही दिखी

सिनेमेटोग्राफर सुदीप चटर्जी का नाम उम्मीद जगाता है, लेकिन उनकी काशी सिर्फ ड्रोन शॉट्स में सिमटकर रह गई। मुंबई में बनी नकली काशी कहानी की तरह ही खोखली लगती है। मनीष प्रधान का एडिटिंग हुनर फिल्म को दो घंटे में समेटने के लिए तारीफ पाता है, वरना ये और लंबी पीड़ा दे सकती थी। गाने (इरशाद कामिल और तनिष्क बागची) भूलने लायक हैं, और बैकग्राउंड म्यूजिक ही थोड़ा सुकून देता है।

क्या ये फिल्म देखने लायक है?

ल चूक माफ देश के उन करोड़ों युवाओं की कहानी हो सकती थी, जो सरकारी नौकरी के लिए जूझ रहे हैं, लेकिन निर्देशक का विजन और कास्टिंग दोनों चूक गए। अमोल पालेकर जैसे किसी नए चेहरे की जरूरत थी, जो इस संघर्ष को जीवंत करता। फिल्म थिएटर में आपके ढाई-तीन हजार रुपये और दो घंटे बर्बाद करने की सजा है। OTT पर भी इसे टुकड़ों में ही देखा जा सकता है। अगर भूल से टिकट ले लिया, तो बस यही कहेंगे—भूल चूक माफ!

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