आजादी की खातिर खूब लड़े : आज अमर शहीद शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह का शहादत दिवस


दोनों वीरों को चुटूपालू घाटी के निकट अंग्रेजों ने 8 जनवरी 1858 को फांसी दे दी थी
रांची। झारखंड की कोख ने अमर शहीद शेख भिखारी व टिकैत उमराव सिंह को जन्म दिया, जिन्होंने देश को स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों की अनेक बर्बर यातनाएं सहीं और हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया। आज इन दोनों वीरों की शहादत दिवस है। अमर शहीद शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका था। 1857 की क्रांति का बिगुल फूंकनेवाले दोनों वीरों को ओरमांझी के चुटूपालू घाटी के निकट पेड़ पर बिना मुकदमा चलाए अंग्रेजों ने 8 जनवरी 1858 को फांसी दे दी थी। अमर शहीद शेख भिखारी का जन्म साधारण परिवार में 1819 में ओरमांझी प्रखंड मुख्यालय से आठ किमी दूर पूर्वी इलाके की कुटे पंचायत के खुदिया लोटवा गांव में और अमर शहीद टिकैत उमराव का पश्चिमी इलाके के खटंगा गांव में जन्म हुआ था। शेख भिखारी की बहादुरी को देखते उन्हें राजा ठाकुर विश्वनाथ के बुलावे पर राजकीय फौज सहित दीवान बनाया गया था।
दोनों वीरों ने विद्रोह का नारा बुलंद किया
लार्ड डलहौजी के जुल्म से बेबस होकर शेख भिखारी और राजा टिकैत उमराव ने विद्रोहियों की सहायता की और अपने सहयोगियों तथा शेख होरो अंसारी, अमानत अली और करामत अली अंसारी को विद्रोहियों के पास भेज कर विद्रोह का नारा बुलंद किया। शेख भिखारी ने 1857 में रामगढ़ स्थित अंग्रेजी सेना के हवलदार राम विजय सिंह और नादिर अली को अपने में मिला लिया और रामगढ़ छावनी पर अचानक हमला कर दिया। वहां सफलता मिलते ही चाईबासा की तरफ अपनी सेना के साथ कूच कर वहां के डिप्टी कमिश्नर की हत्या कर दी। उनके कई सहयोगी युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इसके बाद वहां से शेख भिखारी संताल परगना की ओर प्रस्थान कर गए थे। तब दुमका में भी भीषण युद्ध हुआ था, फिर दुमका से शेख भिखारी रांची आ गए थे और युद्ध में जीत घोषित होने के उपलक्ष्य में राजा विश्वनाथ शाहदेव ने डोरंडा में 1 से सात नवंबर 1857 तक विजय का जश्न मनाया।
चुटूपालू घाटी के निकट पेड़ पर फांसी दे दी गई
अंग्रेज निराश होकर दानापुर छावनी से काफी बड़ी संख्या में सेना और अस्त्र-शस्त्र लेकर रामगढ़ की तरफ बढ़े थे। यहां उनसे लोहा लेने के लिए शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह ने रामगढ़ जाकर मोर्चाबंदी शुरू कर दी। वहां अंग्रेजी सेना के पहुंचते ही जमकर जंग हुई। शेख ने अपना अड्डा चुटूपालू घाटी में बनाया था, छह जनवरी 1857 को अंग्रेजी सेना के कमांडर मैकडोनाल्ड ने शेख भिखारी तक पहुंचाने के गुप्त रास्ते का पता लगा लिया। इसके बाद शेख भिखारी को गिरफ्तार कर लिया और उनके साथ टिकैत उमराव सिंह भी पकड़े गए। चुटूपालू घाटी के निकट पेड़ पर बिना मुकदमा चलाए दोनों वीरों को आठ जनवरी 1858 को फांसी दे दी गई थी।
शेख का जन्म खुदिया लोटवा गांव में हुआ था
शेख भिखारी का जन्म 1819 में ओरमांझी प्रखंड के पूर्वी इलाके खुदिया लोटवा गांव में हुआ था। 1857 में इनकी की उम्र 38 साल थी। बचपन से ही सैन्य संचालन में दक्षता थे। पश्चिमी इलाके में टिकैत उमराव सिंह का जन्म खंटगा गांव में हुआ था। राजा टिकैत उमराव सिंह ने उनकी बुद्धिमता से प्रभावित होकर ही उन्हें दीवान नियुक्त किया ठाकुर विश्वनाथ शाही बड़कागढ़ हटिया ने शेख भिखारी को मुक्ति वाहिनी का सदस्य बनाया, जिसमें ठाकुर विश्वनाथ साहू ,पांडे गणपत राय, जय मंगल पांडे, नादिर अली खान, टिकैत उमराव सिंह, बृजभूषण सिंह, श्यामा सिंह, शिव सिंह, रामलाल सिंह, बिरजू राम, राम लाल सिंह आदि थे। शेख भिखारी टिकैत उमराव सिंह के दीवान थे। 1857 की क्रांति में राजा उमराव सिंह उनके छोटे भाई घासी सिंह और शेख भिखारी ने जिस शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन किया था, उनकी अनुगूंज आज भी सुनाई पड़ती है।
डोरंडा में विद्रोह किया गया था
रांची में डोरंडा की सेना ने 31 जुलाई, 1857 को विद्रोह किया था। उसकी रहनुमाई जमादार माधव सिंह और सूबेदार नादिर अली खान ने किया था। इसका केंद्र चुटूपालू घाटी व ओरमांझी बना। शेख भिखारी इस संग्राम में शामिल थे। 2 अगस्त, 1857 को दिन के 2 बजे चुटूपालू की सेना ने रांची नगर पर अधिकार कर लिया। उस समय छोटनागपुर का आयुक्त इटी डाल्टन, जिला अधिकारी डेविस, न्यायाधीश ओकस तथा पलामू के अनुमंडल अधिकारी बच थे। सभी कांके पिठौरिया के रास्ते से बगोदर भाग गए। तब चाईबासा व पुरुलिया में क्रांति को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने सिख सैनिकों से सहायता ली। हजारीबाग में 2 सितंबर से 4 सितंबर 1857 तक सिख सैनिकों ने पड़ाव डाला। इसी बीच शेख भिखारी हजारीबाग पहुंचे, उन्होंने ठाकुर विश्वनाथ शाही सहदेव का पत्र सिख सेना के मेजर विष्णु सिंह को दिया और राजनीतिक सूझबूझ से मेजर विष्णु सिंह को अपने पक्ष में कर लिया।