Jayant Narlikar Passes Away at 86: ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने वाले वैज्ञानिक की अंतिम विदाई

प्रख्यात भारतीय खगोल भौतिकीविद् जयंत नार्लिकर का 86 वर्ष की आयु में निधन। होयल-नार्लिकर सिद्धांत और IUCAA के संस्थापक ने विज्ञान और विज्ञान संचार में अमूल्य योगदान दिया। उनकी विरासत को जानें।

जयंत नार्लिकर: भारत के महान खगोल भौतिकीविद् और विज्ञान संचारक
डॉ. जयंत विष्णु नार्लिकर, भारतीय खगोल भौतिकी के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अपने शोध, सिद्धांतों और विज्ञान लेखन के माध्यम से वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय में अपनी गहरी छाप छोड़ी। इस लेख में हम जानेंगे उनके जीवन, शिक्षा, वैज्ञानिक योगदान, विज्ञान संचार और उनकी स्थायी विरासत के बारे में — ताकि यह जानकारी सर्च इंजन और पाठकों दोनों के लिए उपयोगी हो।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- जन्म: 19 जुलाई 1938, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
- पिता: विष्णु वासुदेव नार्लिकर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर
जयंत नार्लिकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे और बनारस में प्राप्त की। बाद में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां उन्होंने गणित में ट्राइपोस और पीएचडी पूरी की। यहीं उनकी मुलाकात प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक सर फ्रेड होयल से हुई, जो उनके गुरु और शोध-सहयोगी बने।
होयल-नार्लिकर सिद्धांत: एक क्रांतिकारी सोच
डॉ. नार्लिकर का सबसे प्रमुख वैज्ञानिक योगदान है:
होयल-नार्लिकर सिद्धांत (Hoyle-Narlikar theory) जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने के लिए बिग बैंग सिद्धांत का एक वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत करता है।
- यह सिद्धांत स्थिर अवस्था (steady state) ब्रह्मांड की परिकल्पना करता है, जहां पदार्थ का निर्माण निरंतर होता रहता है।
- यह विचार भले ही आज व्यापक रूप से स्वीकार नहीं है, लेकिन इसने वैज्ञानिकों को नई सोच के लिए प्रेरित किया।
भारत में विज्ञान के लिए योगदान
- 1988 में, डॉ. नार्लिकर ने IUCAA (Inter-University Centre for Astronomy and Astrophysics) की स्थापना पुणे में की।
- यह संस्था आज भारत में खगोल भौतिकी का अग्रणी केंद्र है।
- उन्होंने विज्ञान को आम जनता तक पहुंचाने के लिए कई किताबें और भाषण दिए।
उनकी प्रमुख पुस्तकें:
- The Structure of the Universe
- The Lighter Side of Gravity
- हिंदी/मराठी में: अंतराळातील प्रवास, विज्ञान यात्रा
विज्ञान कथा लेखन: विज्ञान और कल्पना का संगम
डॉ. नार्लिकर एक सफल विज्ञान कथा लेखक भी थे। उनकी कहानियाँ वैज्ञानिक तथ्यों को रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत करती हैं।
- यक्षांची देणगी (Marathi)मराठी
- The Return of Vaman
- उनकी रचनाएँ विज्ञान और साहित्य के संगम का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
सम्मान और पुरस्कार
डॉ. जयंत नार्लिकर को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए:
- पद्म भूषण (1965)
- पद्म विभूषण (2004)
- यूनेस्को का कलिंग पुरस्कार
- फ्रांस का जूल्स जानसेन पुरस्कार
- राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो
विज्ञान संचार: जन-जन तक विज्ञान
डॉ. नार्लिकर का मानना था कि विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए।
- उन्होंने दूरदर्शन पर ब्रह्मांड जैसे कार्यक्रम प्रस्तुत किए।
- स्कूल-कॉलेजों में व्याख्यान और लेखन के माध्यम से उन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाया।
उनकी विरासत और प्रेरणा
डॉ. जयंत नार्लिकर का जीवन विज्ञान, शिक्षा और समाज सेवा का अनुपम उदाहरण है।
- IUCAA आज भी उनके दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहा है।
- उनकी किताबें और कहानियाँ नई पीढ़ी को विज्ञान के प्रति प्रेरित करती हैं।
डॉ. जयंत नारळीकर केवल वैज्ञानिक नहीं थे — वे एक शिक्षक, लेखक, मार्गदर्शक और रोल मॉडल थे।
उनका योगदान भारत को विज्ञान के वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाने में अमूल्य है।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि जिज्ञासा, समर्पण और शिक्षा से हम ब्रह्मांड के सबसे जटिल रहस्यों को भी समझ सकते हैं।