हॉस्पिटल में मरते हुए पिता के आखिरी इच्छा से हुई शादी | लेकिन आशीर्वाद देने के लिए पिता के हाथ उठे तो उठे ही रह गए
रांची। बनारस से सटे गाजीपुर जनपद के एक बुजुर्ग को जब एहसास हो गया की मेरी चन्द सांसें बची हैं, तो उन्होने परिवार वालों से बनारस चलने की इच्छा जताई। परिवार वालों ने उनको कबीरचौरा स्थित मण्डलीय जिला चिकित्सालय में भर्ती करा दिया, उनके साथ उनकी एक बेटी भी थी। जिसके शादी की बात बनारस में चल रही थी। बनारस में जब उनके होने वाले रिश्तेदारों को ये बात पता चली तो वे औपचारिकतवस बुजुर्ग को देखने हॉस्पिटल आए। होने वाले रिश्तेदारों को देखा तो उनके आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। इशारों से उनके बेटी की शादी उनके सामने हो जाए ऐसी उन्होने आखिरी इच्छा जताई। इस बात पर सबमें खुसुर पुसुर होने लगी। किसी ने 100 नम्बर डायल करके पुलिस को भी बुला लिया। लेकिन यहां तो माजरा ही कुछ और था अस्पताल के एक बेड पर एक बुजुर्ग जिसका आधा शरीर लकवाग्रस्त हो चुका था, अस्पष्ट लड़खड़ाती आवाज कुछ इशारे और कुछ आंसूओं से अपनी आखिरी तमन्ना के रूप में अपनी बेटी की शादी देखना चाहता था। मरणासन्न बुजुर्ग के पायताने चरणो को पकड़े बेटी चुपचाप रो रही थी और दूर सिरहाने होने वाला दामाद निर्लिप्त भाव से खड़ा था। लेकिन यही तो बनारस है। यहां तो पुलिस वाले भी दोस्त बन गए , डॉक्टरो ने दवाई के साथ भावनाओं की भी खुराक परोस दी।
बुजुर्ग का बेड ही पवित्र हवन कुंड बन गया
अस्पताल के अन्य कर्मियों ने भी विवाह के सामाजिक रस्म निभाने की बजाय सिन्दूर की वास्तविक कीमत समझाया। अन्य मरीज के परिजन ने आशीर्वाद की महत्ता समझाई। खासकर एक आखिरी सांस गिनते पिता के आशिर्वाद की। पल भर में ही दृश्य बदल गया। दवा के साथ साथ ही चुटकी भर सिन्दूर आया, बुजुर्ग का बेड ही पवित्र हवन कुंड बन गया। अगल बगल के मरीज बाराती बन गए। डॉक्टर जयेश मिश्रा पण्डित बने। लोगों की तालियां बैंड बाजा , परिजनो की दुआ मन्त्रोच्चार बनी और बूढ़े बाप के आसूं दूल्हा-दुल्हन के लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद। लेकिन अलबेली शादी में दूसरे मिनट ही ठहराव आ गया। आशीर्वाद देने के लिए पिता के हाथ उठे तो उठे ही रह गए। उनके हाथों की आखिरी मुद्रा थी। खुशी से उनकी आंखें छलकी तो छलकती ही रह गयीं वो उनके अन्तिम आंसू थे।दिल धड़का तो फिर नहीं धड़का वो उनकी आखिरी धड़कन थी।