
रांची। झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान, राज्य के छह जिलों में लघु खनिजों (पत्थर एवं बालू) के प्रबंधन पर तैयार विशेष ऑडिट रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी गई। प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने इस रिपोर्ट की मुख्य बातें मीडिया के जरिए जनता के सामने रखते हुए गंभीर प्रशासनिक चूकों और भारी राजस्व हानि का खुलासा किया। यह लेखा परीक्षा रिपोर्ट नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 के बीच तैयार की गई थी, जिसमें धनबाद, पाकुड, साहिबगंज, चतरा, पलामू और पश्चिम सिंहभूम जिलों में वर्ष 2017 से 2022 के बीच के खनन कार्यों का आकलन किया गया। प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने कहा कि यह रिपोर्ट लघु खनिज प्रबंधन से जुड़ी प्रशासनिक, तकनीकी और पर्यावरणीय चुनौतियों को स्पष्ट रूप से उजागर करती है और बेहतर खनन प्रशासन के लिए आवश्यक सुधारों की ओर इशारा करती है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं
- भारी राजस्व हानि: लघु खनिजों से होने वाली राज्य की आय 2017-18 के 1082.44 करोड़ रुपये से गिरकर 2021-22 में 697.73 करोड़ रुपये रह गई। इसकी हिस्सेदारी कुल राजस्व में 5.36% से घटकर मात्र 2.23% रह गई।
- पट्टा आवंटन एवं निगरानी में गड़बड़ी
- कई उपायुक्तों द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक क्षेत्र में खनन पट्टे स्वीकृत किए गए।
- वन भूमि पर अनियमित रूप से पट्टे आवंटित किए गए।
- पुराने पट्टों को वर्षों तक निष्क्रिय रखा गया।
- ई-नीलामी प्रक्रिया में देरी के कारण राजस्व का नुकसान हुआ।
- पर्यावरणीय उपेक्षा एवं अवैध खनन
- अवैध खनन पर नियंत्रण के लिए जरूरी 72,449 वाहनों में से एक में भी ट्रैकिंग सिस्टम नहीं था। बिना नंबर वाले वाहनों का उपयोग किया गया।
- खनन क्षेत्रों में पर्यावरण संतुलन के लिए 75,000 पेड़ लगाए जाने थे, लेकिन केवल 2,225 पेड़ ही लगाए गए। कई जिलों में एक भी पेड़ नहीं लगाया गया।
- कई पट्टों में गैर-खनन योग्य क्षेत्रों में अवैध उत्खनन किया गया। सुरक्षा अवरोधों, बेंचिंग और पर्यावरणीय शर्तों का पालन नहीं हुआ।
- तकनीकी एवं प्रशासनिक खामियां
- जिम्स (JMSS) पोर्टल के स्वचालन में कमियां, गलत डेटा प्रविष्टि और निगरानी प्रणाली की कमजोरी से अवैध खनन को बढ़ावा मिला।
- खनिज ब्लॉकों की नीलामी प्रक्रिया अत्यधिक धीमी रही।
- बालू खनन प्रबंधन में विफलता
- झारखंड राज्य खनिज विकास निगम (JSMDC) द्वारा बालू घाटों के प्रबंधन में गंभीत लापरवाही बरती गई।
- राज्य के 23 जिलों में 608 बालू घाटों में से केवल 21 घाट ही परिचालित हो सके। 368 घाटों के न चलने से लगभग 70.92 करोड़ रुपये के संभावित राजस्व का नुकसान हुआ।
- बिना खनन वाले घाटों से बालू की मात्रा कम पाई गई, जो अवैध खनन की ओर इशारा करता है।
- रॉयल्टी में हेराफेरी: पत्थरों से चिप्स बनाने जैसे उत्पादों को ‘बोल्डर’ बताकर रॉयल्टी की चोरी की गई, ताकि कम दर लागू हो सके।
- जुर्माना वसूली में ढिलाई: सर्वोच्च न्यायालय के 2017 के आदेश के अनुसार, तय सीमा से अधिक खनन पर लगने वाला जुर्माना नहीं लगाया गया, जिससे राज्य को लगभग 205 करोड़ रुपये के अतिरिक्त राजस्व से वंचित रहना पड़ा।




