अब फिर बढ़ेगा विवाद : केंद्र सकरार ने कहा- झारखंड का 1.36 लाख करोड़ रुपए केंद्र सरकार के पास बकाया नहीं है
सांसद पप्पू यादव के सवाल पर वित्त राज्य मंत्री का जवाब
रांची। केंद्र सरकार से कोयला रॉयल्टी का बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपए लंबे समय से झारखंड सरकार मांग रही है। लेकिन अब बकाया राशि को लेकर केंद्र सरकार ने जवाब दे दिया है। लोकसभा में बिहार के निर्दलिय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने लोकसभा में सवाल पूछा कि कोयले में राजस्व के रूप में अर्जित कर में झारखंड सरकार की हिस्सेदारी 1.36 लाख करोड़ केंद्र सरकार के पास लंबित है। उसे ट्रांसफर नहीं किया जा रहा है, इसके क्या कारण है। इस पर केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने संसद में दिए अपने लिखित जवाब में कहा है कि यह सही नहीं है। कोयले से प्राप्त 1.36 लाख करोड़ रुपए के राजस्व के रूप में अर्जित कर में झारखंड सरकार का कोई हिस्सा केंद्र सरकार के पास लंबित नहीं है। इस बयान के बाद झारखंड व केंद्र सरकार के बीच एक बार फिर विवाद बढ़ने की पूरी संभावना है। बता दें कि झारखंड सरकार वर्षों से बकाए 1.36 लाख करोड़ रुपए की मां केंद्र सरकार से कर रही है।
हेमंत ने मोदी को लिखि थी चिठ्ठी
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर केंद्र सरकार से झारखंड में कार्यरत कोयला कंपनियों से मार्च 2022 तक राज्य के खजाने में देय ₹1,36,042 करोड़ की बकाया राशि जारी करने का आग्रह किया था। पत्र 23 सितंबर 2024 को लिखा गया था, लेकिन इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ के माध्यम से बुधवार (25 सितंबर, 2024) को जारी किया गया। पत्र में सोरेन ने कहा था कि वे भाजपा-सहयोगी राज्यों की तरह विशेष दर्जा नहीं मांग रहे हैं, न ही केंद्रीय बजट में अधिक हिस्सा मांग रहे हैं, बल्कि उनकी मांग सिर्फ न्याय की है, विशेषाधिकार की नहीं। उन्होंने मार्च 2022 में भी इसी तरह का पत्र लिखा था। सोरेन ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा था कि जब उन्होंने झारखंडियों के अधिकार की मांग की तो उन्हें जेल में डाल दिया गया।
पत्र में सोरेन ने यह लिखा था…
जैसा कि आप जानते हैं कि झारखंड राज्य का सामाजिक-आर्थिक विकास मुख्य रूप से खदानों और खनिजों से होने वाले राजस्व पर निर्भर करता है और इसका 80% कोयला खनन से आता है। जैसा कि मैंने अपने पिछले पत्र में बताया है, ₹1,36,042 करोड़ के बराबर बकाया है। बार-बार याद दिलाने के बावजूद, इस दिशा में कुछ भी नहीं हुआ है, जिससे राज्य को भारी नुकसान हुआ है और राज्य सरकार को विभिन्न सामाजिक-आर्थिक सुधारों और नीतियों को अंतिम गांव के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने और विस्तारित करने की संभावना से वंचित होना पड़ा है। उन्होंने दोहरे मानदंड का आरोप लगाते हुए कहा कि जब झारखंड की बिजली कंपनियों ने डीवीसी को बकाया भुगतान में थोड़ी देरी की, तो उनसे 12% की दर से ब्याज वसूला गया और भुगतान न करने के कारण भारतीय रिजर्व बैंक से उनके खाते से सीधे डेबिट कर लिया गया।
बस हमें हमारा अधिकार दे दो, यही हमारी मांग
सोरेन ने कहा कि हमारे द्वारा देय बकाया व हमें देय बकाया के बीच नीति में अंतर एक विरोधाभास और मनमानापन दर्शाता है, जो राज्य को बहुत ही नुकसानदेह स्थिति में डालता है। बस हमें हमारा अधिकार दे दो, यही हमारी मांग है। हमारी मांग सिर्फ़ न्याय की है, विशेषाधिकारों की नहीं। झारखंड के लोगों ने अपने राज्य के लिए लंबा संघर्ष किया है, और अब हम अपने संसाधनों और अधिकारों का उचित उपयोग चाहते हैं। हम अपनी बकाया राशि ₹1.36 लाख करोड़ का उपयोग झारखंड को विकास के नए रास्ते पर ले जाने के लिए करेंगे। ऐसा विकास जो हमारे पर्यावरण, आदिवासियों और हर झारखंडी समुदाय के हितों की रक्षा करे। हम शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करेंगे ताकि हमारे बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो। हम अपनी भाषा और संस्कृति की बेहतर सुरक्षा करेंगे ताकि हमारी पहचान बरकरार रहे और हम अपने युवाओं को रोज़गार के नए आयाम प्रदान करेंगे।
हम अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे
बकाया राशि जारी करने की मांग करते हुए सोरेन ने कहा कि केंद्र सरकार को उनके हक और उनके पैसे पर जल्द फैसला लेना चाहिए और झारखंड के विकास में बाधा नहीं बल्कि भागीदार बनना चाहिए। हम अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे, चाहे इसके लिए हमें कितनी भी मुश्किलों का सामना क्यों न करना पड़े। झारखंड की धरती पर जन्मे हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने राज्य के हितों की रक्षा करे और हम अपने पूर्वजों की तरह एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएंगे, लड़ेंगे और अपना अधिकार लेंगे। यदि कानून 4.5% की ब्याज राशि को शामिल करने की अनुमति देता है तो 510 करोड़ रुपए प्रति माह केवल राज्य को देय ब्याज राशि होगी। राज्य द्वारा उठाई गई न्यायोचित कानूनी मांग के भुगतान में इस देरी ने मुझे आपको यह लिखने के लिए बाध्य किया है कि इस लापरवाही से राज्य और उसके लोगों को अपूरणीय क्षति हो रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, स्वच्छ पेयजल और अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी जैसी विभिन्न सामाजिक क्षेत्र की योजनाएं धन की कमी के कारण जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो पा रही हैं।