Ambedkar Jayanti 2024 : आज भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की 133वीं जयंती
आखिरी बाबा साहेब अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म क्यों अपनाया था
रांची। 14 अप्रैल 2023 को भारतीय संविधान के जनक बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव रामाजी अंबेडकर (Baba Saheb Dr. Bhimrao Ramaji Ambedkar) की 133वीं जयंती देशभर में मनाई जाएगी। झारखंड की राजधानी रांची सहित कई जिलों में अंबेडकर की जंयती मनाकर उन्हें याद किया जाएगा। समाज में कमजोर, मजदूर और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी और निचले तबके को समानता का अधिकार दिलाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। निचले कुल में जन्में भीमराव अंबेडकर ने बचपन से ही भेदभाव का सामना किया। वह समाज की वर्ण व्यवस्था को खत्म करना चाहते थे, एक समय ऐसा आया जब हिंदू धर्म छोड़कर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपना लिया था। लंबी बीमारी के कारण 1955 में डॉ. अंबेडकर का स्वास्थ्य खराब हो गया। 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में ही उनका निधन हो गया।
मध्य प्रदेश में हुआ था जन्म
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (1891-1956) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू छावनी, मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा सतारा, महाराष्ट्र में पूरी की और अपनी माध्यमिक शिक्षा बांबे के एलफिंस्टन हाई स्कूल से पूरी की। उनकी शिक्षा काफी भेदभाव के बावजूद हासिल हुई, क्योंकि वह अनुसूचित जाति (तब ‘अछूत’ मानी जाती थी) से थे। अपनी आत्मकथात्मक टिप्पणी ‘वेटिंग फॉर ए वीजा’ में उन्होंने याद किया कि कैसे उन्हें अपने स्कूल में आम नल से पानी पीने की अनुमति नहीं थी, उन्होंने लिखा, “कोई चपरासी नहीं, तो पानी नहीं”।
1918 में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर बने
डॉ. अंबेडकर ने 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए की उपाधि प्राप्त की। कॉलेज में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के कारण 1913 में उन्हें एमए और पीएचडी करने के लिए बड़ौदा राज्य के तत्कालीन महाराजा (राजा) सयाजीराव गायकवाड़ द्वारा छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया था। अमेरिका के न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय में 1916 में उनकी मास्टर थीसिस का शीर्षक था “ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन और वित्त”। कोलंबिया के बाद डॉ. अंबेडकर लंदन चले गए, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस (एलएसई) में पंजीकरण कराया और कानून का अध्ययन करने के लिए ग्रेज इन में दाखिला लिया। लेकिन धन की कमी के कारण उन्हें 1917 में भारत लौटना पड़ा। 1918 में वह सिडेनहैम कॉलेज, मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर बन गए। इस दौरान उन्होंने सार्वभौम वयस्क मताधिकार की मांग करते हुए साउथबोरो समिति को एक बयान प्रस्तुत किया।
1927 में महाड सत्याग्रह जैसे सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया
1920 में कोल्हापुर के छत्रपति शाहूजी महाराज की वित्तीय सहायता, एक मित्र से व्यक्तिगत ऋण और भारत में अपने समय की बचत के साथ, डॉ. अंबेडकर अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए लंदन लौट आए। 1922 में उन्हें बार में बुलाया गया और वे बैरिस्टर-एट-लॉ बन गये। उन्होंने एलएसई से एमएससी और डीएससी भी पूरा किया। उनकी डॉक्टरेट थीसिस बाद में “रुपये की समस्या” के रूप में प्रकाशित हुई। भारत लौटने के बाद, डॉ. अंबेडकर ने बहिष्कृत हितकारिणी सभा (बहिष्कृत लोगों के कल्याण के लिए सोसायटी) की स्थापना की और भारतीय समाज की ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित जातियों के लिए न्याय और सार्वजनिक संसाधनों तक समान पहुंच की मांग के लिए 1927 में महाड सत्याग्रह जैसे सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। उसी वर्ष, उन्होंने मनोनीत सदस्य के रूप में बॉम्बे विधान परिषद में प्रवेश किया।
1935 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज मुंबई के प्रिंसिपल बने
इसके बाद डॉ. अंबेडकर ने 1928 में संवैधानिक सुधारों पर भारतीय वैधानिक आयोग, जिसे ‘साइमन आयोग’ भी कहा जाता है, के समक्ष अपनी बात रखी। साइमन आयोग की रिपोर्ट के परिणामस्वरूप 1930-32 के बीच तीन गोलमेज सम्मेलन हुए, जहां डॉ. अंबेडकर को आमंत्रित किया गया था अपना निवेदन प्रस्तुत करने के लिए। 1935 में डॉ. अंबेडकर को गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई के प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया गया, जहां वे 1928 से प्रोफेसर के रूप में पढ़ा रहे थे। इसके बाद उन्हें वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य (1942-46) के रूप में नियुक्त किया गया।
कोलंबिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि
1946 में अंबेडकर भारत की संविधान सभा के लिए चुने गए। 15 अगस्त 1947 को उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में शपथ ली। इसके बाद उन्हें संविधान सभा की मसौदा समिति का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने भारत के संविधान के प्रारूपण की प्रक्रिया का नेतृत्व किया। 1952 में पहले आम चुनाव के बाद वे राज्यसभा के सदस्य बने। उसी वर्ष उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया गया। 1953 में उन्हें उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद से एक और मानद डॉक्टरेट की उपाधि से भी सम्मानित किया गया।
1956 में बौद्ध धर्म अपना लिया
बचपन से जाति प्रथा का दंश झेल चुके अंबेडकर ने 13 अक्टूबर 1935 को एक घोषणा की, जिसमें उन्होंने कहा कि वो हिंदू धर्म छोड़ने का निर्णय ले चुके हैं। अंबेडकर का कहना था, मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है, क्योंकि एक व्यक्ति के विकास के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है जो करुणा, समानता और स्वतंत्रता है. धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए। उनके मतानुसार जाति प्रथा के चलते हिंदू धर्म में इन तीनों का ही अभाव था। 14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर ने अपने लाखों समर्थकों के साथ हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था।
मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं
अंबेडकर ने हिंदू धर्म में व्याप्त वर्ण व्यवस्था को खत्म करने के लिए सामाजिक के साथ कानून लड़ाई तक लड़ी। लेकिन जब उनके तमाम प्रयास विफल हो गए तब उन्हें लगा कि हिंदू धर्म में जातिप्रथा और छुआ-छूत की कुरीतियों को दूर नहीं किया जा सकता। बाबा साहेब ने अपने भाषण में कहा था कि अगर सम्मानजनक जीवन और समान अधिकार चाहते हैं स्वंय की मदद करनी होगी, इसके लिए धर्म परिवर्तन ही एक रास्ता है। उनके शब्द थे कि “मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं, कम से कम यह तो मेरे वश में है”। बौद्ध धर्म अपनाने के पीछे बाबा साहेब का मानना था कि बौद्ध धर्म प्रज्ञा (अंधविश्वास और परालौकिक शक्तियों के विरुद्ध समझदारी), करुणा (प्रेम, दुखियों और पीड़ित के लिए संवेदना) प्रदान करता है और समता (धर्म, जात-पात, लिंग, ऊंच-नीच की सोच से कोसो दूर मानव के बराबरी में विश्वास करने का सिद्धांत है) का संदेश देता है। इन तीनों की बदौलत मनुष्य के अच्छा और सम्मानजनक जीवन जी सकता है।
यह भी जानें….
- अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था, वह अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे।
- डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल थे। वह ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे।
- अंबेडकर लगभग 2 वर्ष के थे जब उनके पिता नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए थे। जब वह केवल छह वर्ष के थे तब उसकी मां का निधन हो गया था।
- 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास होने के बाद अंबेडकर की शादी एक बाजार के खुले छप्पड़ के नीचे हुई।
- 1924 में इंग्लैंड से वापस लौटने के बाद, उन्होंने दलित लोगों के कल्याण के लिए एक एसोसिएशन की शुरुआत की, जिसमें सर चिमनलाल सीतलवाड़ अध्यक्ष और डॉ अंबेडकर चेयरमैन थे।
- 15 अगस्त 1936 को अंबेडकर ने दलित वर्गों के हितों की रक्षा करने के लिए “स्वतंत्र लेबर पार्टी” का गठन किया, जिसमें ज्यादातर श्रमिक वर्ग के लोग शामिल थे।
- 1942 में, वह भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में एक श्रम सदस्य के रूप में नियुक्त हुए। 1946 में, उन्हें बंगाल से संविधान सभा के लिए चुना गया। उसी समय उन्होंने अपनी पुस्तक प्रकाशित की, “शूद्र कौन थे”?
- आजादी के बाद, 1947 में, उन्हें देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में कानून एवं न्याय मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। लेकिन 1951 में उन्होंने कश्मीर मुद्दे, भारत की विदेश नीति और हिंदू कोड बिल के प्रति प्रधानमंत्री नेहरू की नीति पर अपना मतभेद प्रकट करते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
- डॉ बाबासाहेब अंबेडकर को 1954 में नेपाल के काठमांडू में “जगतिक बौद्ध धर्म परिषद” में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा “बोधिसत्व” की उपाधि से सम्मानित किया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि डॉ. अंबेडकर को जीवित रहते हुए ही बोधिसत्व की उपाधि से नवाजा गया था।
- उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में और स्वतंत्रता के बाद इसके सुधारों में भी अपना योगदान दिया। इसके अलावा बाबासाहेब ने भारतीय रिजर्व बैंक के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- केंद्रीय बैंक का गठन हिल्टन यंग कमीशन को बाबासाहेब द्वारा प्रस्तुत की गई अवधारणा के आधार पर किया गया था।
- डॉ भीमराव आंबेडकर को 31 मार्च 1990 को मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करके देश और समाज के प्रति उनके अमूल्य योगदान को नमन किया गया।