Lok Sabha Election : 1951 से 2019 तक | देखें कब किसकी रही सत्ता | 2024 में किसका बजेगा डंका
– कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन 1984 में 415 सीट
– बीजेपी का सबसे बेहतर प्रदर्शन 2019 में 303 सीट
रांची। आजाद भारत के पहले आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच हुए थे। यह बहुत बड़ा आयोजन था जिसमें दुनिया की आबादी का करीब 17 फीसदी हिस्सा मतदान करने वाला था, यह उस समय का सबसे बड़ा चुनाव था। चुनाव में करीब 1,874 उम्मीदवार और 53 राजनैतिक पार्टियां उतरी थीं, जिनमें 14 राष्ट्रीय पार्टियां थी। इनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा सहित कई पार्टियां शामिल थीं। इन पार्टियों ने 489 सीटों पर चुनाव लड़े थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 364 सीटों पर जीत और 45% वोट के साथ प्रचंड बहुमत मिला था। कुल 16 सीट जीतने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मुख्य विपक्ष बनी थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू, आजाद भारत के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले प्रधानमंत्री बने।
आजादी मिली 1947 में चुनाव हुए 1951 में
भारत आजाद तो 15 अगस्त, 1947 को हो गया था, लेकिन पहले चुनाव 1951 में हो पाए। बीच के वर्षों में भारत, किंग जॉर्ज VI के अधीन संवैधानिक राजतंत्र था. साथ ही, लुई माउंटबेटन इसके गवर्नर-जनरल थे। पहली चुनी हुई सरकार बनने से पहले जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में संविधान सभा बतौर संसद कार्य करती रही। देश के नेताओं ने चुनावों की प्रक्रिया जुलाई 1948 से ही शुरू कर दी थी। देश के नेताओं ने चुनावों की प्रक्रिया जुलाई 1948 से ही शुरू कर दी थी। हालांकि तब तक चुनाव कराने के लिए कोई कानून नहीं थे। डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर के नेतृत्व में ड्राफ़्टिंग कमिटी (मसौदा समिति) ने कड़ी मेहनत कर संविधान का मसौदा तैयार किया था, जो 26 नवंबर, 1949 को पारित हुआ। हालांकि इसे लागू 26 जनवरी, 1950 से किया गया। भारत को उस दिन चुनाव कराने के लिए नियम और उप-नियम मिले और देश आखिरकार ‘भारत गणराज्य’ बना।
पहले चुनाव आयुक्त बनें सुकुमार सेन
यह एक असाधारण सफर की महज शुरुआत थी। संविधान लागू होने के बाद चुनाव आयोग का गठन किया गया। चुनाव कराने के बेहद मुश्किल काम की जिम्मेदारी भारतीय नौकरशाह, सुकुमार सेन को दी गई। वे भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने। जवाहर लाल नेहरू चाहते थे कि चुनाव 1951 के बसंत में हों। उनकी इस जल्दबाज़ी को समझा जा सकता था, क्योंकि भारत लोकतंत्र की जिस नई सुबह का तीन सालों से इंतज़ार कर रहा था उसकी आखिरकार शुरुआत हो रही थी। मुक्त, निष्पक्ष, और पारदर्शी तरीके से इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं था। इसमें एक बड़ी चुनौती थी भारत की आबादी, जो उस समय 36 करोड़ थी। संविधान के लागू होने पर भारत ने वोट डालने के लिए उसी उम्र को योग्य माना जो तब दुनिया भर में अपनाई जा चुकी थी। इससे 21 साल से ज़्यादा उम्र वाले 17.3 करोड़ लोग वोट डालने के लिए योग्य हो गए।
पहले चुनाव में 45.7% मतदान हुए
जनगणना के आंकड़ों के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र तय किए जाने थे, जो 1951 में हो पाया। फिर देश की ज़्यादातर अशिक्षित आबादी के लिए पार्टी के चुनाव चिह्न डिजाइन करने, मतपत्र, और मतदान पेटी बनाने से जुड़ी समस्याएं थीं। मतदान केंद्र बनाए जाने थे। साथ ही यह पक्का करना था कि केंद्रों के बीच सही दूरी हो। मतदान अधिकारियों को नियुक्त कर प्रशिक्षण देना भी जरूरी था। इन चुनौतियों के बीच एक और मुश्किल सामने आ गई, भारत के कई राज्यों में खाने की कमी हो गई और प्रशासन को राहत कार्यों में जुटना पड़ा। इन चुनौतियों को पार करने में समय लगा। हालांकि आखिर में जब चुनाव हुए, तो योग्य आबादी में से 45.7% मतदाता पहली बार वोट डालने के लिए अपने घरों से बाहर निकले। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना, जहां लोगों ने लोगों के लिए एक सरकार चुनी।
18वें चुनाव का शंखनाद हो गया है
भारतीय चुनाव आयोग 2024 लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर चुका है। साल 1952 में हुए लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक कुल 17 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं और 18वें चुनाव का शंखनाद हो गया है। अंग्रेजों से देश की आजादी के बाद पहली बार लोकसभा के लिए आम चुनाव 1951-52 में हुए थे। भारत में आजादी से लेकर अब तक हुए लोकसभा के चुनावों के परिणाम क्या रहे।
1. जब पहली लोकसभा के आम चुनाव हुए थे तो कांग्रेस सबसे बड़ी रजनीतिक पार्टी थी और जनसंघ जो कि बाद में बीजेपी के रूप में सामने आया उसके पास सिर्फ 3 लोक सभा सीटें थीं।
2. पहले चुनाव से लेकर (1952 से 1971 तक) पांचवें लोक सभा चुनाव तक कांग्रेस भारत की सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन 1977 के चुनाव में इसे जनता पार्टी ने हरा दिया और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 154 जबकि जनता पार्टी को 352 सीटें मिली थीं।
3. 1984 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस के प्रति लोगों की हमदर्दी बढ़ी और कांग्रेस ने अपने पूरे राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी जीत दर्ज करते हुए 415 सीटें जीतीं, इस चुनाव में बीजेपी ने भी 2 सीटें जीतीं थी।
4. 1984 से 1999 तक बीजेपी की सीटों में लगातार वृद्धि होती आई थी और उसकी सीटों की संख्या 2 से बढ़कर 303 तक पहुंच गई। लेकिन इसी अवधि में कांग्रेस की सीटों की संख्या 415 से घटकर 44 पर आ गिरी।
कब किस पार्टी का बजा डंका
1951-52, कुल निर्वाचित स्थान: 489, सीटें मिली- कांग्रेस-364, वामपंथी-27, समाजवादी-12, जनसंघ-3
1957 : 494, कांग्रेस-371,वामपंथी-27, प्रजा समाजवादी-19, जनसंघ-4
1962 : 494, कांग्रेस-361,वामपंथी-29, प्रजा समाजवादी-12, जनसंघ-14
1967 : 520, कांग्रेस-283, जनसंघ- 35, सीपीआई-23, सीपीएम-19, प्रजा समाजवादी-13
1971 : 518, कांग्रेस-352, सीपीएम-25, सीपीआई-24, डीएमके-23, जनसंघ-21
1977 : 542, जनता पार्टी-298, कांग्रेस- 154, सीपीएम-22, सीपीआई-7
1980 : 542, कांग्रेस-353, जनता (सेक्युलर)-41, सीपीएम-36, सीपीआई-11, डीएमके-16
1984 : 542, कांग्रेस-415, टीडीपी-28 , सीपीएम-22, सीपीआई-6, जनता -10, बीजेपी-2
1989 : 543, कांग्रेस-197,जनता दल-141, बीजेपी-86, , सीपीएम-32, सीपीआई-12, टीडीपी-2
1991 : 543, कांग्रेस-232, बीजेपी-119, जनता दल-59, सीपीएम-35, सीपीआई-13, टीडीपी-13
1996 : 543, बीजेपी-161, कांग्रेस-140, जनता दल-46, सीपीएम-32,समाजवादी पार्टी-17, टीडीपी-16, सीपीआई-12
1998 : 543, बीजेपी-182, कांग्रेस-141, सीपीएम-32,समाजवादी पार्टी-20, टीडीपी-12, सीपीआई-9, बसपा-5
1999 : 543, बीजेपी-182, कांग्रेस-114, सीपीएम-33, टीडीपी-29, समाजवादी पार्टी-26, बसपा-14 सीपीआई-4
2004 : 543, कांग्रेस-145, बीजेपी-138, सीपीएम-43, समाजवादी पार्टी-36, बसपा-19, शिवसेना-12, सीपीआई-10
2009 : 543, कांग्रेस-206, बीजेपी-116, राजद-24, समाजवादी पार्टी-23, बसपा-21, सीपीएम-16, शिवसेना-11
2014 : 543, बीजेपी-282, कांग्रेस- 44, AIDMK- 37, TMC- 34, बिजू जनता दल- 20, शिवसेना-18, टीडीपी-16
2019 : 543, बीजेपी-303, कांग्रेस- 52
2024 : 543, बीजेपी…. कांग्रेस…