इस रात न तो ज्यादा गर्मी और न ज्यादा ठंड होगी यानी मौसम खुशनुमा होगा
रांची। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस्लाम धर्म में रमजान का मुबारक महीना बहुत ही पाक और खास माना जाता है। क्योंकि इस महीने में हर मुस्लिम रोजा रखते हैं, पांच वक्त की नमाज के साथ-साथ तरावीह भी पढ़ते हैं और अल्लाह की खूब इबादत करते है। रोजा रखने के साथ-साथ शब-ए-कद्र की रातों का भी काफी महत्व है। इस दौरान पूरी रात अल्लाह की इबादत की जाती है और दिल से दुआ मांगी जाती है। जो भी दुआएं मांगी जाती हैं, वो कबूल होती हैं। शब-ए-कद्र की रात रमजान के आखिरी के दस दिनों में आती है, जिसमें पांच रातों को शामिल किया गया है, 21, 23, 25, 27, 29 की रात। पांच रातों में से किसी एक दिन शब-ए-कद्र की रात आती है, जिसकी कई निशानियां कुरान में बयान की कई हैं।
बहुत ही पाक रातों में से एक मानी जाती है
इस्लाम में शब-ए-कद्र बहुत ही पाक रातों में से एक मानी जाती है, जिसे लैलातुल कद्र के नाम से भी जाता है। इसे अंग्रेजी में नाइट ऑफ डिक्री, नाइट ऑफ पावर, नाइट ऑफ वैल्यू भी कहा जाता है। मुस्लिम ग्रंथ के अनुसार इस रात कुरान की आयतों को दुनिया पर जिब्रील (फरिशते) के जरिए sallallahu alaihi wasallam (صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ) पर नाजिल होना शुरू हुआ था। शब ए कद्र के दिन नफील नमाज अदा करते हैं। तहज्जुद की नमाज की अदायगी की जाती है। कसरत से कुरान की तिलावत की जाती है। बहुत से उम्र में दराज़ी और अपने गुनाहों की माफी की दुआ भी मांगते हैं और नफील नमाज अदा करते हैं।
हजार महीने से बेहतर रात
रमजान के महीने में शब-ए-कद्र की रात आती है, जिसे हजार महीने की रात से बेहतर समझा जाता है। इस दौरान की जाने वाली हर इबादत का सवाब कई गुणा बढ़त जाता है। अगर सच्चे दिल से अपने गुनाह की माफी मांगी जाती है, तो अल्लाह माफ कर देता है। इस दौरान तमाम मुस्लिम पूरी रात जागते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं। कुरान पढ़ते हैं, नफ्ल नमाज अदा करते हैं, तहज्जुद की नमाज पढ़ते है। जिस दिन शब-ए-कद्र की रात होगी उस रात बहुत रोशनी होगी और आसमान चांद से चमक रहा होगा। इस रात न तो ज्यादा गर्मी और न ज्यादा ठंड होगी मतलब मौसम खुशनुमा होगा।
शब-ए- कद्र की दुआ…
अल्लाहुम्मा इंनका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफवा फ’अफु अन्नी
Allahumma innaka afuwwun tuhibbul afwa fa’Afu anni
( ए अल्लाह तू माफ करने वाला है और बेशक तू माफी को पसंद करता है, ए अल्लाह हमारे तमाम गुनाह तो माफ फरमा)