झारखंड लेटेस्ट न्यूज
रांची। रांची में हर्षोल्लास के साथ बकरीद की नमाज कई मस्जिदों में पढ़ी गई। नमाज के बाद देश में अमन-चैन के लिए दुआ की गई। नमाज के लोग अपने-अपने घरों में घरों पर कुर्बानी दिए। मौसम के खुले होने के कारण किसी तरह की कोई परशानियां लोगों को नहीं हुई। सुबह 5.30 से लोग मस्जिदों में आना शुरू कर दिए। 6.30 बजे तक कई मस्जिदों में बकरीद की नमाज मोकम्मल हो गई। डोरण्डा ईदगाह में 8 बजे नमाज शुरू हुई। यहां मौलाना सैय्यद शाह अल्कमा शिबली कादरी ने नमाज पढ़ाई। नमाज के बाद लोग एक दूसरे से हाथ मिलाकर व गले मिलकर बकरीद की बधाइयां दिए। वहीं, इस बार हरमू रोड ईदगाह में बकरीद की नमाज नहीं पढ़ी जाएगी। अंजुमन इसलामिया ने बुधवार देर रात इसकी सूचना दी। वहीं, सुरक्षा के भी चाक-चौबंद हर जगह रहे।
हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के याद में मनाया जाता है
इब्राहिम अलैहिस्सलाम ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि वे अपने प्यारे बेटे इस्माईल अलैहिस्सलाम (जो बाद में पैगंबर हुए) को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें। यह इब्राहिम अलैहिस्सलाम के लिए एक इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ अपने बेटे से मुहब्बत एक तरफ था अल्लाह का हुक्म था। इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के हुक्म को पूरा किया और अल्लाह को राजी करने की नीयत से अपने लख्ते जिगर इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी देने को तैयार हो गए। अल्लाह के आदेश बाद अपने बेटे के कुर्बानी देने के लिए मक्का के पास मीना पर्वत पर चले गए। यह जानने पर कि यह ईश्वर की इच्छा थी। पैगंबर इस्माइल अलैहिस्सलाम ने अपने पिता से कहा, अब्बा आप अपनी आखों में पट्टी बांध लें, ताकि आपको मेरी कुर्बानी देने में कोई परेशानी न हो। फिर इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने बेटे के बात को मानते हुए अपने आंखों पर पट्टी बांध ली, फिर बेटे के गर्दन पर छुरी चला दी। इसके बाद जब इब्राहिम अलैहिस्सलाम आंख से पट्टी हटाए तो देखा की बेटे की जगह दुंबा का जबह हुआ है। यह देखकर वह हैरान रह गए। इस्माइल उसके बगल में खड़ा था, पूरी तरह से सुरक्षित था। तब उन्हें पता चला कि यह उनके विश्वास और अल्लाह के प्रति अटूट भक्ति की परीक्षा थी। इसलिए, ईद-उल-अजहा का त्योहार दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा अल्लाह के लिए पैगंबर इब्राहिम की कुर्बानी की याद में कुर्बानी देकर मनाया जाता है।
मकसद अल्लाह को राजी करना है
कुर्बानी एक जरिया है, जिससे बंदा अल्लाह की रजा को हासिल करता है। बेशक अल्लाह को कुर्बानी का मांस (गोश्त) नहीं पहुंचता है, बल्कि वह तो केवल कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत देखता है। अल्लाह को पसंद है कि बंदा उसकी राह में अपना हलाल से कमाया हुआ धन खर्च करे। कुर्बानी की सिलसिला तीनों दिनों तक चलता है। अल्लाह दिलों के हाल जानता है और वह खूब समझता है कि बंदा जो कुर्बानी दे रहा है, उसके पीछे उसकी नीयत क्या है। जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करेगा तो यकीनन वह अल्लाह की रजा हासिल करेगा। लेकिन अगर कुर्बानी करने में दिखावा या तकब्बुर आ गया तो उसका सवाब जाता रहेगा। कुर्बानी इज्जत के लिए नहीं की जाए, बल्कि इसे अल्लाह की इबादत समझकर किया जाए।
News Box Bharat latest news