झारखंड में डेमोग्राफी बदलाव : भाजपा के आंकड़े गलत | लोगों का ध्यान बांटने की हो रही कोशिश


रांची। हाल के दिनों में भाजपा व उसके प्रमुख नेता लगातार बयान दे रहे हैं कि झारखंड में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठी आ रहे हैं। आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है, आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं, जमीन हथिया रहे हैं, लव जिहाद, लैंड जिहाद कर रहे हैं। यह बोला जा रहा है कि झारखंड बनने के बाद संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 16% कम हुई है और मुसलमानों की 13% बढ़ी है। सांसद निशिकांत दुबे ने तो संसद में बयान दिया कि 2000 में संथाल परगना में आदिवासी 36% थे और अब 26% हैं और इसके जिम्मेवार बांग्लदेशी घुसपैठ (मुसलमान) हैं। सोमवार को (29 जुलाई 2024) लोकतंत्र बचावो अभियान की ओर से प्रेस रिलीज कर यह जाकारी दी गई।
क्या झारखंड आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही
1951 की जनगणना के अनुसार झारखंड क्षेत्र में 36% आदिवासी थे। वहीं, 1991 में राज्य में 27.67% आदिवासी थे और 12.18% मुसलमान। आखरी जनगणना (2011) के अनुसार राज्य में 26.21% आदिवासी थे और 14.53% मुसलमान। वहीं, संथालपरगना में आदिवासियों का अनुपात 2001 में 29.91% से 2011 में 28.11% हुआ। तो भाजपा का 16% व 10% का दावा झूठ है।
व्यापक गिरावट 1951 से 1991 के बीच हुई
1- इस दौरान आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में गैर-आदिवासी झारखंड में आये, खास कर के शहरों एवं माइनिंग व कंपनियों के क्षेत्रों में। उदहारण के लिए रांची में आदिवासियों का अनुपात 1961 में 53.2% से घट के 1991 में 43.6% हो गया था। वहीं, झारखंड क्षेत्र में अन्य राज्यों से 1961 में 10.73 लाख प्रवासी, 1971 में 14.29 लाख प्रवासी और 1981 में 16.28 लाख प्रवासी आये थे, जिनमें अधिकांश उत्तरी बिहार व आस-पास के अन्य राज्यों के थे। हालांकि इनमें अधिकांश काम के बाद वापस चले गए। लेकिन अनेक बस भी गए। नौकरियों में स्थानीय को प्राथमिकता न मिलने के कारण, पांचवी अनुसूची प्रावधान व आदिवासी-विशेष कानून सही से न लागू होने के कारन अन्य राज्यों के गैर-आदिवासी बसते गए।
2- आदिवासी दशकों से विस्थापन व रोजगार के अभाव में लाखों की संख्या में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं, जिसका सीधा असर उनकी जनसंख्या वृद्धि दर पर पड़ता है। केंद्र सरकार के 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट अनुसार 2001 से 2011 के बीच राज्य के 15-59 वर्ष उम्र के लगभग 50 लाख लोग पलायन किए थे।
3- दशकों से आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर अन्य गैर-आदिवासी समूहों से कम है। 1951-91 के बीच आदिवासियों की जनसंख्या का वार्षिक घातीय वृद्धि दर (annual exponential growth rate) 1.42 था, जबकि पूरे झारखंड का 2.03 था। अपर्याप्त पोषन, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी के कारण आदिवासियों का मृत्यु दर अन्य समुदायों से अधिक है।
क्या झारखंड में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठी घुस रहे हैं
भाजपा नेता अपने मन मुताबिक देश में बांग्लादेशी घुसपैठी की संख्या कभी 12 लाख बोलते हैं, तो कभी 20 लाख। घुसपैठिये से उनका निशाना मुसलमानों पर रहता है। लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA सरकार लगातार संसद में बयान देते आ रही है कि उनके पास बांग्लादेशी घुसपैठिये की संख्या सम्बंधित कोई आंकड़े नहीं हैं। अगर संथाल परगना में केवल मुसलमानों की आबादी को गौर करें तो 2001 से 2011 के बीच कुल आबादी के अनुपात में हुई 2.15% की वृद्धि दर्शाती है कि बांग्लादेश से आकर बसने वाले मुसलमानों की संख्या दावों की तुलना में बहुत ही कम होगी (अगर हुई तो)।
क्या झारखंड में लव जिहाद हो रहा है
एक तरफ भाजपा नेता लव जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग कर साम्प्रदायिकता फैला रहे हैं। मोदी सरकार ने संसद में जवाब दिया है कि कानून में लव जिहाद नामक कुछ नहीं है एवं केंद्रीय जांच एजेंसियों ने ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं किया है। यह गौर करने की बात है कि किसी भी धर्म या समुदाय के व्यक्ति को किसी भी अन्य धर्म या समुदाय के व्यक्ति से शादी करने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार है। हालांकि 2013 के एक शोध अनुसार झारखंड में केवल 5.7% शादी ही अंतर-धार्मिक (हर धर्म के परिप्रेक्ष में) होते हैं।
क्या आदिवासियों की जमीन की लूट हो रही है
दशकों से CNT व SPT का उल्लंघन कर गैर-आदिवासी आदिवासियों की जमीन हथिया रहे हैं। पांचवी अनुसूची क्षेत्र के शहरी इलाके इसका स्पष्ट प्रमाण है। लैंड जिहाद जैसे सांप्रदायिक शब्दों का प्रयोग कर भाजपा सच्चाई से भटकाने की कोशिश कर रही है।
क्या है भाजपा की राजनीति
एक तरफ़ भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर मोदी व रघुवर दास सरकार ने अडानी पावरप्लांट परियोजना के लिए आदिवासियों की जमीन का जबरन अधिग्रहण किया था।. झारखंड को घाटे में रखकर अडानी को फाएदा पहुंचाने के लिए राज्य की ऊर्जा नीति को बदला और संथालपरगना को अंधेरे में रखकर बांग्लादेश को बिजली भेजी।
भाजपा साम्प्रदायिकता और ध्रुवीकरण करना चाहती
भाजपा आदिवासियों की जनसंख्या अनुपात में कमी के मूल कारणों पर बात न करके गलत आंकड़े पेश करके केवल धार्मिक साम्प्रदायिकता और ध्रुवीकरण करना चाहती है। एक ओर भाजपा आदिवासियों की जनसंख्या के लिए चिंता जता रही है, वहीं दूसरी ओर झारखंड सरकार द्वारा पारित सरना कोड, पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण व खतियान आधारित स्थानीयता नीति पर न केवल चुप्पी साधी हुई है। बल्कि इन्हें रोकने की पूरी कोशिश करती रही है। मोदी सरकार जाति जनगणना से भी भाग रही है, जिससे समुदायों व विभिन्न जातियों की वर्तमान स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। गौर करें कि आदिवासियों के जिन मुद्दों को इसमें रेखांकित किये गए हैं, वे झारखंड आन्दोलन के मूल मुद्दे थे। अगर भाजपा इन मुद्दों को स्वीकार नहीं कर रही है, तो वो आन्दोलन पर भी सवाल कर रही है। लोकतंत्र बचाओ अभियान राज्य सरकार से मांग करता है कि गलत आंकड़ों को पेश कर साम्प्रदायिकता फ़ैलाने वालों पर तुरंत कार्यवाई करें एवं उक्त मूल मुद्दों पर सार्वजानिक चर्चा शुरू करे।
लोकतंत्र बचाओ अभियान के ओर से
अफजल अनीस, अजय एक्का, अंबिका यादव, अमृता बोदरा, अंबिता किस्कू, अलोका कुजूर, अरविंद अंजुम, बासिंग हस्सा, भरत भूषण चौधरी, भाषण मानमी, बिनसाय मुंडा, चार्ल्स मुर्मू, दिनेश मुर्मू , एलिना होरो, एमिलिया हांसदा, हरि कुमार भगत, ज्यां द्रेज, ज्योति कुजूर, कुमार चन्द्र मार्डी, किरण, लीना, लालमोहन सिंह खेरवार, मानसिंग मुंडा, मेरी निशा हंसदा, मंथन, मुन्नी देवी, नंदिता भट्टाचार्य, प्रवीर पीटर, रिया तूलिका पिंगुआ, पकू टुडु, रामचंद्र मांझी, राजा भारती, रमेश जेराई, रेशमी देवी, रोज़ खाखा, रोज मधु तिर्की, शशि कुमार, संदीप प्रधान, सिराज दत्ता, सुशील मरांडी, सेबेस्टियन मरांडी, संतोष पहाड़िया, टॉम कावला, विनोद कुमार।