रांची। देश के बड़े फुटबॉल खिलाड़ियों में शुमार झारखंड फुटबॉल के जादूगर 75 वर्षीय प्रभाकर मिश्रा शुक्रवार को इस दुनिया को अलविदा कह गए। 1977 में इन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और रांची, बिहार (अब झारखंड) का नाम विश्व के मानचित्र पर लहराया। प्रभाकर फुटबॉल में अपनी पूरी जिदंगी लगा दिए। वर्ष 2002 में एचईसी से रिटायर हुए थे। सीएए ने प्रभाकर मिश्रा के निधन पर गहरा दुख प्रकट किया। सीएए के महासचिव आसिफ नईम ने कहा कि उनका निधन फुटबॉल जगत खासकर रांची के लिए एक बहुत बड़ा धक्का लगा है। उनकी भरपाई कभी पूरी नहीं की जा सकती है। सीएए में उनके योगदान को कोई नहीं भूल सकता। ऐसा खिलाड़ी फिर इस राज्य को अब नहीं मिल सकता। 1966 में मुंगेर (बिहार) से फुटबॉल की शुरुआत करने वाले मिश्रा ने झारखंड-बिहार के युवाओं में जोश भर कर कई खिलाड़ियों को एक अच्छा प्लेटफॉर्म दिलाया। उनके कोचिंग में कई खिलाड़ियों ने अपनी लंबी सफर फुटबॉल में तय की। फुटबॉल खिलाड़ियों को हमेशा वो फायदा ही पुहंचाए। छोटानागपुर एथलेटिक्स एसोसिएशन (सीएए) के लाइफ मंबर रहे प्रभाकर ने रांची फुटबॉल को बहुत कुछ दिया। उन्होंने कई ऑफिशियल व क्लब में कोचिंग भी दी।
उपलब्धि
1966- मुंगेर सेफुटबॉल शुरू की
1968- भागलपुरयूनिवर्सिटीसे खेले
1972- कोलकाता में फुटबॉल खेली
1973- मोहम्मड्न स्पोर्टिंगक्लब रांची की ओर से खेले
1974- बांग्लादेश में खेले
1975- एरियंस क्लब के लिए खेले
1977- भारतीय टीम के लिए खेले।
खिलाड़ियों को तराशने का काम किए
प्रभाकर मिश्रा राज्य की फुटबॉल टीम की सेलेक्शन कमेटी में भी रहे।2 वर्ष तक रांची से इंटर स्टेट फुटबॉल टीम का सेलेक्शन करवाते रहे। उन्होंने वर्ष 1978 से 80 तक हैदराबाद के महान फुटबॉल खिलाड़ी जॉन विक्टर को संयुक्त बिहार के समय रांची में बुलवाया था और यहां होनहार खिलाड़ियों के चयन उनके बेहतर प्रशिक्षण का जिम्मा भी सौंपा था। हालांकि इसके बाद विक्टर हैदराबाद में फुटबॉल को बढ़ावा देने में जुट गए। इस दौरान प्रभाकर ने अपने काम को बखूबी जारी रखा। फुटबॉल की नई पौध को अभ्यास करवाने से वे कभी नहीं चूके।