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Tuesday, June 3, 2025
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वक्फ बोर्ड की ताकत घटी ! धारा 40 हटने से संपत्तियों पर अब कौन करेगा नियंत्रण

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वक्फ संपत्ति विवाद अब कोर्ट के पास

रांची। वक्फ संशोधन बिल 2024 लोकसभा में पास हो गया है। 2 अप्रैल 2024 को लोकसभा में पेश किए गए वक्फ संशोधन बिल 2024 के सबसे चर्चित प्रावधानों में से एक है सेक्शन 40 को समाप्त करना। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे वक्फ अधिनियम का “सबसे कठोर प्रावधान” बताते हुए संसद में इसके खात्मे की घोषणा की। आइए जानते हैं कि सेक्शन 40 क्या था और इसके हटने के क्या मायने हैं।

सेक्शन 40 क्या था?

  • अधिकार का केंद्र: यह धारा वक्फ बोर्ड को यह तय करने का अधिकार देती थी कि कोई संपत्ति वक्फ (इस्लामिक धार्मिक दान) संपत्ति है या नहीं। बोर्ड का निर्णय अंतिम माना जाता था, जिसमें सरकार या अन्य संस्थाएं हस्तक्षेप नहीं कर सकती थीं।
  • स्वायत्तता: इसके तहत, वक्फ बोर्ड बिना बाहरी दबाव के जांच कर किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता था। यहां तक कि अगर कोई संपत्ति किसी अन्य ट्रस्ट के नाम पंजीकृत हो, तो बोर्ड उसे वक्फ के तहत दर्ज करने का आदेश दे सकता था।
  • अपील का विकल्प: असंतुष्ट पक्ष केवल वक्फ ट्रिब्यूनल में ही अपील कर सकते थे।

पारदर्शिता और सरलीकरण

रिजिजू के अनुसार, सेक्शन 40 हटाने का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में भ्रष्टाचार और अराजकता को रोकना है। सरकार का दावा है कि यह बदलाव:

  1. संपत्ति विवादों में पारदर्शिता लाएगा।
  2. प्रशासनिक प्रक्रिया को सरल और कुशल बनाएगा।
  3. वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग पर अंकुश लगेगा।

विपक्ष की आपत्ति: स्वायत्तता पर चोट

  • तृणमूल कांग्रेस के सांसद कालन बैनर्जी ने चेतावनी दी कि सेक्शन 40 हटने से वक्फ बोर्ड एक “गुड़िया” (बिना शक्ति का पुतला) बन जाएगा।
  • आलोचकों का मानना है कि यह कदम बोर्ड की स्वतंत्रता खत्म करके सरकार को वक्फ संपत्तियों पर सीधा नियंत्रण देगा।
  • साथ ही, इससे वक्फ संस्थाओं के धार्मिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों पर प्रभाव पड़ सकता है।

आगे की राह

इस संशोधन के बाद अब वक्फ संपत्तियों का निर्धारण सिविल कोर्ट या अन्य प्रशासनिक तंत्रों के माध्यम से होगा। सरकार इसे “कानूनी भ्रम दूर करने” की दिशा में एक कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे अल्पसंख्यक संस्थाओं पर केंद्रीयकरण का हमला मान रहा है। यह देखना होगा कि यह बदलाव वक्फ प्रबंधन में वास्तविक सुधार लाता है या फिर संस्थागत स्वायत्तता के नए विवाद खड़े करता है।

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