

पिछले 15 सालों में, राजनीतिक दलों ने गांव-स्तर पर काम करने वाले लोगों, खासकर महिलाओं, तक पहुंच बनाने के लिए नई रणनीति अपनाई है.
News Report : भारत जैसे देश में, जहां बहुत से लोग खेती पर निर्भर हैं, लोकतंत्र की असली ताकत जमीन से जुड़ी होती है। यहां की राजनीति पर गांव-स्तर के मुद्दों का बहुत असर होता है और इसमें महिलाओं की भागीदारी एक बहुत बड़ी भूमिका निभा रही है। यही भारतीय लोकतंत्र की असली जान है। माना जाता है कि जो पार्टी या नेता गांव-कस्बों की स्थानीय राजनीति से अच्छी तरह जुड़ा होता है, उसके केन्द्र की सत्ता में आने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। इसमें महिलाएं, चाहे वह मतदाता हों, प्रचारक हों या चुनाव लड़ने वाली उम्मीदवार, चुनाव का एक अहम हिस्सा हैं, खासकर स्थानीय चुनावों में।
पार्टियों ने बदली अपनी रणनीति
पिछले 15 सालों में, राजनीतिक दलों ने गांव-स्तर पर काम करने वाले लोगों, खासकर महिलाओं, तक पहुंच बनाने के लिए नई रणनीति अपनाई है। उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए, लोगों से बातचीत के नए तरीके अपनाए और सबको साथ लेकर चलने वाली नेतृत्वशैली को बढ़ावा दिया। यह रणनीति अब हर पार्टी की जरूरत बन गई है। इससे पार्टियों की ‘जनसेवक’ की छवि बनती है और लोग उन्हें अधिक मान्यता देते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा है चुनाव लड़ने का मौका, जो महिलाओं को स्थानीय स्तर से राजनीति शुरू करके बड़े पदों तक पहुंचने में मदद करता है।
मुस्लिम महिलाएं ले रहीं हैं बढ़-चढ़कर हिस्सा
मुस्लिम महिलाएं अब खासतौर पर इस राजनीतिक मौके का फायदा उठा रही हैं। वे साम्प्रदायिक मुद्दों से ऊपर उठकर समुदाय की असली समस्याओं को उठा रही हैं और शासन की दिशा बदल रही हैं। कई महिलाएं पार्टियों से जुड़ रही हैं या फिर अपनी मर्जी से चुनाव लड़ रही हैं, जिससे उनके समुदाय की छवि भी बदल रही है और राजनीति की बातचीत में नए मुद्दे जुड़ रहे हैं। सरकार की योजनाएं जैसे उज्ज्वला योजना, गरीब कल्याण योजना, जन धन योजना, आदि ने भी मुस्लिम महिलाओं के लिए निर्णय लेने और राजनीति में भाग लेने के रास्ते खोले हैं। इन योजनाओं ने दलों का वोट बैंक भी मजबूत किया है। सरकार ने अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम महिलाओं तक पहुंच बढ़ाकर जमीनी राजनीति को और समावेशी बनाने की कोशिश की है।
राज्यों के उदाहरण: बदलाव की असली तस्वीर
उत्तर प्रदेश: 2023 के शहरी स्थानीय चुनावों में पहले से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतरे। इनमें से 61 महिलाएं जीतीं। सहारनपुर की फुलबानो जैसी महिलाएं नगर पंचायत की अध्यक्ष चुनी गईं। उनकी प्राथमिकताएं साफ हैं: पानी, सफाई, सड़क और आंगनवाड़ी जैसी बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देना।
बिहार: यहां पंचायतों में महिलाएं पहले से ही बहुमत में हैं। मुस्लिम महिलाओं ने चुनाव लड़ने में कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन स्वयं सहायता समूहों के जरिए वे सफलता हासिल कर रही हैं।
असम: यहां की कई मुस्लिम महिलाओं ने बिना किसी बड़ी पार्टी के समर्थन के, अपने परिवार और समुदाय के भरोसे चुनाव लड़ा और जीते। यह एक बड़ा बदलाव है क्योंकि पहले ये महिलाएं घर तक ही सीमित थीं।
केरल: यहां ‘कुडुंबश्री’ नाम का दुनिया का सबसे बड़ा महिला संगठन, राजनीति में भागीदारी का एक बड़ा प्लेटफॉर्म बन गया है। 2020 के स्थानीय चुनावों में इसकी 16,965 सदस्यों ने चुनाव लड़ा और 7,071 जीतीं। मुस्लिम बहुल इलाके मलप्पुरम में भी महिलाओं का स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व आम बात हो गई है।
सरकार की भूमिका: प्रशिक्षण और मंच
केन्द्र सरकार ‘राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान’ के तहत निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है। 8 मार्च 2025 को “महिला-अनुकूल ग्राम पंचायतों” के लिए विशेष ग्राम सभाएं बुलाई गईं। सरकार ने राज्यों को “महिला सभाएं” बनाने के निर्देश भी दिए हैं, ताकि महिलाएं सामूहिक रूप से अपनी मांगें रख सकें। मुस्लिम महिलाएं इन मंचों का इस्तेमाल करके खुद को अभिव्यक्त कर रही हैं और सशक्त हो रही हैं।
निष्कर्ष: एक सच्चा बदलाव
ये सभी उदाहरण दिखाते हैं कि स्थानीय संस्थाओं में मुस्लिम महिलाओं का आना केवल दिखावा नहीं है, बल्कि यह भारत की जमीनी राजनीति में एक असली बदलाव है। आरक्षण, राजनीतिक दलों की पहुंच और नए मंचों की मदद से ये महिलाएं अपनी भागीदारी से सार्वजनिक जीवन में सुधार ला रही हैं। अगर यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, तो यह महिलाएं न केवल खुद मजबूत होंगी, बल्कि स्थानीय परिदृश्य बदल देंगी और भारतीय लोकतंत्र को दुनिया के सामने एक मिसाल पेश करेंगी।