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Sunday, June 1, 2025
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Chandrayaan-3 Mission: चांद के बहुत करीब पहुंचा हिंदुस्तान

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रांची। इसरो ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा.. दूसरे और अंतिम डीबूस्टिंग ऑपरेशन ने एलएम कक्षा को सफलतापूर्वक 25 किमी x 134 किमी तक कम कर दिया है। मॉड्यूल को आंतरिक जांच से गुजरना होगा और निर्दिष्ट लैंडिंग स्थल पर सूर्योदय का इंतजार करना होगा। पावर्ड डिसेंट 23 अगस्त, 2023 को लगभग 1745 बजे शुरू होने की उम्मीद है। चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे एम. अन्नादुरई के मुताबिक, 23 अगस्त की शाम को चंद्रयान-3 के लैंडर को 25 किमी की ऊंचाई से चांद की सतह तक पहुंचने में 15 से 20 मिनट लगेंगे। चंद्रमा (Moon Mission) पर पहुंचने की होड़ में भारत, रूस से आगे निकलता दिख रहा है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) ने जहां चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) लांच किया है, जो सटीक तरीके से अपने मिशन पर चल रहा है, वहीं रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस द्वारा छोड़े गए यान लूना-25 (Luna-25) में तकनीकी खामी आ गई है। रूस के इस यान को चंद्रयान से पहले चंद्रमा की सतह पर उतरना है।

लैंडर मॉड्यूल 23 को चांद की सतह पर उतर सकता है

अभी चंद्रयान-3 चांद की सतह से महज 25 किलोमीटर दूर है। लैंडर मॉड्यूल 23 अगस्त 2023 को शाम करीब 5.45 बजे चांद की सतह पर उतर सकता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कहा है कि अब मॉड्यूल की आंतरिक जांच की जाएगी। इसके बाद निर्धारित लैंडिंग स्थल (जहां विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग होगी) पर सूर्योदय का इंतजार करना होगा।

डीबूस्टिंग का चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया

भारत का मून मिशन चंद्रयान-3 चंद्रमा के और करीब पहुंच गया है। रविवार को दूसरी डीबूस्टिंग का चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया। अब पूरी दुनिया को 23 अगस्त को इंतजार है, जब विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, वहीं, चंद्रमा पर भारत से पहले पहुंचने की कोशिशों में लगे रूस को झटका लगा है।

रूस लूना-25 में तकनीकी खराबी आई

रूस के अंतरिक्ष यान Luna-25 में तकनीकी खराबी आ गई है। इसके चलते इसकी कक्षा नहीं बदली जा सकी। रुस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने कहा कि उसके अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्थिति का विश्लेषण कर रहे हैं। इस बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। लूना-25 को सोमवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था। इसके लिए लैंडिग से पहले कक्षा बदली जानी थी, लेकिन तकनीकी दिक्कत के कारण नहीं बदली जा सकी।


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