कैबिनेट ने 75 साल बाद जाति जनगणना को दी हरी झंडी | जातिगत आंकड़ों को जनगणना में शामिल करने का फैसला


रांची। बुधवार यानी 30 अप्रैल 2025 को मोदी कैबिनेट के ऐतिहासिक फैसले में जाति जनगणना को हरी झंडी मिल गई। जाति जनगणना के ऐलान के बाद राहुल गांधी ने कहा कि आखिरकार सरकार ने जाति जनगणना की बात कह दी है। हम इसे सपोर्ट करते हैं, लेकिन सरकार को इसकी समय सीमा बतानी होगी। हमने तेलंगाना में कास्ट सेंसस कराया, इसे मॉडल बनाया जा सकता है। हमें कास्ट सेंसस से आगे जाना है। किस जाति की ऊंचे पदों में कितनी हिस्सेदारी है, ये पता करनी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मोदी सरकार की कैबिनेट बैठक के बाद घोषणा की। इनमें दशकों से लंबित जाति आधारित जनगणना को शामिल करने, किसानों के लिए राहत पैकेज और उत्तर-पूर्व के विकास से जुड़ी प्रमुख परियोजनाएं शामिल हैं। वैष्णव ने बताया कि अगली राष्ट्रीय जनगणना में जाति के आंकड़े एकीकृत किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि 1947 के बाद से जाति की व्यापक जनगणना नहीं हुई। कांग्रेस ने इसे राजनीतिक कारणों से टाला और केवल सीमित सर्वे कराए। पीएम मोदी ने यह ऐतिहासिक फैसला लेकर समावेशी विकास को प्राथमिकता दी है।
आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना कराई जाएगी
देश में आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना कराई जाएगी। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को जाति जनगणना को मंजूरी दी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल जाति जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जाति जनगणना की शुरुआत सितंबर में की जा सकती है।हालांकि जनगणना की प्रोसेस पूरी होने में एक साल लगेगा। ऐसे में जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में मिल सकेंगे। देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। इसे हर 10 साल में किया जाता है। इस हिसाब से 2021 में अगली जनगणना होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे टाल दिया गया था।
इतिहास, राजनीति और वर्तमान बहस
2011 तक भारतीय जनगणना फॉर्म में कुल 29 कॉलम शामिल थे, जिनमें नाम, पता, व्यवसाय, शिक्षा, रोजगार और प्रवास जैसे सवालों के साथ केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित जानकारी दर्ज की जाती थी। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के आंकड़ों को शामिल करने के लिए जनगणना अधिनियम, 1948 में संशोधन की आवश्यकता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, SC की आबादी 16.6% और ST की 8.6% थी, जबकि SC और ST की क्रमशः 1,270 और 748 जातियां दर्ज की गईं। OBC की 2,650 जातियों के आंकड़े अभी तक सार्वजनिक नहीं हैं।
सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) 2011
मनमोहन सिंह सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई, जिसे ग्रामीण विकास, शहरी विकास और गृह मंत्रालय ने संयुक्त रूप से संचालित किया। हालांकि, इस सर्वेक्षण का जाति-आधारित डेटा आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया। केवल SC और ST परिवारों के आंकड़े ही ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। इस परियोजना पर 4,389 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन परिणामों को गोपनीय रखा गया।
राजनीतिक मांगें और विवाद
- राहुल गांधी और विपक्ष: 2023 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की मांग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया। BJD, SP, RJD, BSP और NCP जैसी विपक्षी पार्टियां भी इसकी पैरवी कर रही हैं।
- भाजपा और NDA का रुख: भाजपा ने ऐतिहासिक रूप से जातिगत जनगणना का विरोध किया, लेकिन बिहार में उसने इसका समर्थन किया। अक्टूबर 2023 में बिहार देश का पहला राज्य बना, जिसने OBC सहित जातिगत आंकड़े जारी किए।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 1980 का दशक: उत्तर प्रदेश में बसपा नेता कांशीराम ने जाति-आधारित आरक्षण की मांग उठाई। इसी दौरान कई क्षेत्रीय दलों ने OBC के हक में आंदोलन शुरू किए।
- मंडल आयोग और आरक्षण: 1979 में गठित मंडल आयोग ने OBC को 27% आरक्षण की सिफारिश की, जिसे 1990 में तत्कालीन PM वी.पी. सिंह ने लागू किया। इससे देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए।
- 2010 का दबाव: लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस के OBC नेताओं ने मनमोहन सरकार पर जातिगत जनगणना कराने का दबाव बनाया, जिसके बाद 2011 में SECC शुरू हुई।
वर्तमान स्थित
बिहार के जातिगत सर्वे के अनुसार, राज्य की 63% आबादी OBC और EBC (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना की मांग को और मजबूत करता है। हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि जाति-आधारित आंकड़े सामाजिक विभाजन को बढ़ा सकते हैं।
निष्कर्ष: जातिगत जनगणना का मुद्दा सामाजिक न्याय, आरक्षण और राजनीतिक हितों से जुड़ा है। जहां विपक्ष इसे “आंकड़ों के आधार पर नीति निर्माण” का माध्यम बताता है, वहीं सरकार संवैधानिक और प्रशासनिक चुनौतियों का हवाला देती है।