शिक्षा व्यवसायीकरण vs अभिभावकों की मजबूरी : झारखंड में कैसे रुकेगी स्कूलों की मनमानी


झारखंड में अब नहीं चलेगी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी
रांची। अप्रैल का महीना शुरू होते ही झारखंड के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों की चिंताएं बढ़ जाती हैं। इसकी वजह है स्कूलों द्वारा तरह-तरह के बहानों से की जाने वाली मनमानी फीस वृद्धि। कुछ स्कूल “डेवलपमेंट चार्ज” या “बिल्डिंग फंड” के नाम पर अतिरिक्त राशि वसूलते हैं, तो कुछ “री-एडमिशन” या “किताब-ड्रेस ” तय करके मनचाहे दाम ऐंठते हैं। बिना डीजल की कीमत बढ़े हर साल बस भाड़ा बढ़ाने की प्रथा भी अभिभावकों को परेशान करती है।
सरकार ने उठाए कदम, गठित हुईं समितियां
हाल ही में विधानसभा के बजट सत्र में भाजपा विधायकों द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद राज्य सरकार सक्रिय हुई है। स्कूली शिक्षा विभाग के सचिव उमाशंकर सिंह ने झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण (संशोधन) अधिनियम, 2017 को लागू करते हुए दो-स्तरीय समिति व्यवस्था को मजबूत करने के निर्देश दिए हैं। इनमें पहली स्कूल स्तरीय शुल्क समिति है, जिसमें प्रबंधन के प्रतिनिधि, प्राचार्य, शिक्षक और चार अभिभावक सदस्य होते हैं। यह समिति फीस बढ़ोतरी के प्रस्तावों का आकलन करेगी। यदि फीस में 10% से अधिक वृद्धि प्रस्तावित है, तो इसके लिए जिला स्तरीय समिति (उपायुक्त की अध्यक्षता में) की मंजूरी अनिवार्य होगी।
कमेटी का गठन होगा
झारखंड के निजी स्कूलों के शुल्क निर्धारण को लेकर स्कूल और जिला स्तर पर कमेटी का गठन होगा। इस संबंध में स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के सचिव उमाशंकर सिंह ने सभी आयुक्त व उपायुक्त को पत्र लिखा है। जिलों को भेजे गए पत्र में झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण (संशोधन) अधिनियम 2017 के आलोक में शुल्क समिति का गठन करने को कहा गया है। अधिनियम के प्रावधान के अनुरूप 15 दिनों के अंदर विद्यालय स्तर पर शुल्क समिति व जिलास्तर पर जिला समिति का गठन करने को कहा गया है। इस संबंध में शिक्षा विभाग को भी जानकारी देने को कहा गया है।
कानूनी पृष्ठभूमि और कोर्ट के आदेश
यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के टीएमए पाई बनाम कर्नाटक राज्य मामले और झारखंड हाईकोर्ट के 2003 व 2013 के आदेशों के अनुपालन में बनाई गई है। पहले शिकायत निवारण के लिए कोई स्पष्ट मापदंड नहीं थे, लेकिन 2017 के संशोधित अधिनियम के तहत अब फीस निर्धारण में पारदर्शिता का प्रावधान है। इसके तहत स्कूलों को अपने खर्चों (शिक्षकों का वेतन, रखरखाव लागत आदि) और आय का ब्योरा देना होगा।
अभिभावकों की भूमिका और चुनौतियां
हालांकि, इस व्यवस्था की सफलता अभिभावकों की सक्रियता पर निर्भर करेगी। शिक्षा सचिव ने स्वीकारा कि अक्सर अभिभावक शिकायत दर्ज नहीं कराते, क्योंकि उन्हें डर होता है कि स्कूल उनके बच्चों को निशाना बनाएंगे। इसी भय का फायदा उठाकर कई स्कूल मनमानी जारी रखते हैं। जिला समिति में शिकायत करने का अधिकार दिए जाने के बावजूद, अधिकारियों का मानना है कि अभिभावकों को आगे आना होगा।
न्यायालय ने दी हरी झंड
गौरतलब है कि इस अधिनियम को 20 निजी स्कूलों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। सरकार ने सभी जिला अधिकारियों को अधिनियम की प्रति और कोर्ट के आदेश भेजकर नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने को कहा है।
प्रशासनिक कमिटी बनाने का स्वागत : कैलाश यादव
प्रशासनिक कमिटी के अवहेलना करने पर निजी स्कूलों के खिलाफ अभिभावकों के शिकायत मिलने पर कड़ी कारवाई के साथ स्कूलों का मान्यता रद्द होनी चाहिए। अभिभावक संघ झारखंड के अध्यक्ष कैलाश यादव ने निजी स्कूलों के मनमानी ढंग से री-एडमिशन शुल्, वार्षिक शुल्क जैसे अतिरिक्त शुल्क वसूलने के खिलाफ लगाम लगाने हेतु राज्य सरकार द्वारा प्रशासनिक कमिटी बनाने की घोषणा का सहृदय स्वागत किया है। यादव ने प्रेस ब्यान जारी कर कहा कि री-एडमिशन, वार्षिक शुल्क वसूलने के अलावा स्कूलों/परिसरों में यूनिफॉर्म और कॉपी-किताब बेचने पर भी सख्त रोक लगाई जाने पर संज्ञान लेने होंगे। अभिभावक संघ झारखंड के अध्यक्ष कैलाश यादव ने कहा कि प्रशासनिक कमिटी को निजी स्कूलों के मनमानी पर 2.50 लाख का जुर्माना लगाने के साथ यूनिफॉर्म और कॉपी-किताब बेचने पर भी प्रतिबंध लगाने एवं जुर्माने का प्रावधान होनी चाहिए। साथ ही प्रशासनिक कमिटी के आदेशों का अवहेलना करने पर अभिभावकों के शिकायत मिलने के बाद निजी स्कूलों पर कड़ी कारवाई करते हुए स्कूलों के मान्यता रद्द होनी चाहिए।