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Tuesday, September 16, 2025
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निशिकांत दुबे पगला गए हैं…इसे कांके में भर्ती कराओ | कोर्ट संज्ञान ले व गिरफ्तार करे

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रांची। झारखंड की गोड्डा लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना पर दिए गए आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद देश में भूचाल आ गया है। देश के सभी पार्टी के नेता निशिकांत के बयान का खुलकर विरोध कर रहे हैं। इस बीच झारखंड कांग्रेस के नेता व पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की ने कहा कि निशिकांत दुबे पगला गए हैं…इसे कांके (पागलखाना) में भर्ती कराओ। कभी यह बोलता है संथालपरगना को झारखंड से अलग करो, कभी सुप्रीम कोर्ट के कार्यशैली पर सवाल उठाता है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के काम पर ऊंगली उठाता है। कोर्ट को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए व निशिकांत दुबे को गिरफ्तार करना चाहिए। यब बातें बंधु तिर्की ने वक्फ कानून के विरोध में मांडर के मुड़मा मैदान में आयोजित जनसभा में लोगों को संबोधित करते हुए कहा। साथ ही कहा कि इस कानून को किसी भी सूरत में झारखंड में लागू नहीं होने देंगे।

दुबे का विवादित बयान

शनिवार (19 अप्रैल) को दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा, “देश में धार्मिक संघर्ष भड़काने का दोषी सुप्रीम कोर्ट है। अदालत अपनी सीमा लांघ रही है। अगर हर मुद्दे पर कोर्ट का रुख करना है, तो संसद और विधानसभाएं बंद कर देनी चाहिए।” उन्होंने सीजेआई संजीव खन्ना पर “देश में गृहयुद्ध के लिए जिम्मेदार” होने का आरोप भी लगाया। इसके अलावा, दुबे ने राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया और संसदीय अधिकारों को लेकर सवाल उठाए। दुबे की टिप्पणी ऐसे समय आई है जब सुप्रीम कोर्ट वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिकता पर सुनवाई कर रहा है। इस कानून को लेकर विपक्ष और सरकार के बीच तनाव है। वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल में न्यायपालिका द्वारा विधायिका के क्षेत्र में दखल को लेकर बहस छेड़ी थी, जिस पर विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के रुख का समर्थन किया था। भाजपा ने दुबे और उत्तर प्रदेश के सांसद दिनेश शर्मा (जिन्होंने भी न्यायपालिका पर टिप्पणी की थी) के बयानों को पूरी तरह खारिज कर दिया है। नड्डा ने जोर देकर कहा, “भाजपा के लिए न्यायपालिका लोकतंत्र का आधार है। हम संविधान और अदालतों के फैसलों का सम्मान करते हैं।”

राजनीतिक बवाल, भाजपा ने किया पलटी

झारखंड के गोड्डा सीट से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना पर आपत्तिजनक टिप्पणियों की मुखालफत के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उनके बयान से खुद को अलग कर लिया है। कांग्रेस समेत विपक्षी नेताओं ने दुबे के विवादास्पद बयान को “संवैधानिक मूल्यों पर हमला” बताते हुए कड़ी निंदा की है। विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने स्पष्ट किया कि दुबे का बयान “पार्टी लाइन के विपरीत” है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “भाजपा न्यायपालिका का पूरा सम्मान करती है। दुबे की टिप्पणी उनकी निजी राय है, जिसे पार्टी खारिज करती है।” नड्डा ने बताया कि दुबे को ऐसे बयान न देने के निर्देश दिए गए हैं।

कांग्रेस नेता इरफान अंसारी का हमला

झारखंड सरकार में मंत्री और कांग्रेस नेता इरफान अंसारी ने सोशल मीडिया पर दुबे को निशाने पर लेते हुए कहा, “भाजपा देश को धर्म और जाति के आधार पर बांटने की साजिश कर रही है, लेकिन संविधान में विश्वास रखने वाले लोग उनके नफरत भरे इरादों को सफल नहीं होने देंगे।” अंसारी ने आरोप लगाया कि दुबे जैसे लोग “न्यायपालिका को नीचा दिखाकर खुद को संविधान से ऊपर समझते हैं।” उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से दुबे को सदन से निलंबित करने की मांग भी की।

भाजपा देश में लागू करना चाहती है मनुस्मृति

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य विनोद पांडेय ने कहा कि न्यायपालिका को लेकर गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के विरोधात्मक बयान लोकतंत्र विरोधी करार दिया है।पांडेय ने कहा कि असल बात यह है कि भाजपा देश में मनुस्मृति लागू करना चाहती है। भाजपा को देश के संवैधानिक ढ़ांचे पर विश्वास ही नहीं है। चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर कब्जा किया जा चुका है। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भी इन्हें आपत्ति है। आखिरकार भाजपा इस देश को कहां ले जाना चाहती है? भाजपा के नेताओं ने निशिकांत दुबे के बयान पर चुप्पी क्यों साध रखी है? बात-बात पर बयान जारी करने वाले बाबूलाल मरांडी जी क्यों नहीं इसपर स्थिति स्पष्ट करते? न्यायपालिका पर देश के गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों का अटूट भरोसा है। भाजपा अब अपने नेताओं के जरिए न्यायपालिका पर हमले करा रही है। ये मनमुताबिक निर्णय नहीं होने पर न्यायपालिका पर दबाव बना रहे हैं।

निष्कर्ष

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा का यह कदम संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अपनी छवि को नुकसान से बचाने का प्रयास है। हालांकि, विपक्ष इसे “न्यायपालिका पर सत्ता के दबाव” की रणनीति बता रहा है। मामला अब संसदीय शिष्टाचार से लेकर संवैधानिक ताने-बाने तक की बहस में तब्दील हो गया है।

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