झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में सीएम हेमंत सोरेन ने कहा- 1932 के खतियानी ही कहलाएंगे झारखंडी
सदन में स्थानियता विधेयक दोबारा पारित हुआ
रांची। झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के चौथे कार्य दिवस के दिन सदन में दोबारा स्थानियता विधेयक दोबारा पारित हो गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रस्ताव रखा कि 11 नवंबर 2022 को पारित बिल को उसी स्वरूप में दोबारा पारित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अटॉर्नी जनरल का परामर्श तर्कसंगत नहीं है। इस पर महाधिवक्ता से भी राय ली गई है, इस विधेयक के 9वीं अनुसूची में शामिल होने से ज्यूडिशल रिव्यू नहीं हो पाएगा। सीएम ने कहा कि भारत के अटॉर्नी जनरल के हवाले से राज्यपाल ने जो संदेश दिया है, उसका इस विधेयक से कोई लेना ना देना नहीं है।
यह विधेयक 2022 में पारित हुआ था
बता दें कि पूर्व में इस बिल को हेमंत सोरेन की सरकार ने 11 नवंबर 2022 को विशेष सत्र बुलाकर बहुमत से पारित करा लिया था। लेकिन लंबे समय तक यह बिल राजभवन में पड़ा रहा। राजभवन ने पहले उस बिल को सरकार को लौटाया था, लेकिन बाद में अपने संदेश के साथ विधानसभा को लौटा दिया था। सत्र के पहले ही दिन बिल वापस किए जाने की वजह से जुड़े राज्यपाल के संदेश को स्पीकर ने सदन में पढ़ा था। इसके बाद सताधारी दलों ने स्पष्ट कर दिया था कि यह बिल दोबारा पारित कराया जाएगा।
झारखंड विधानसभा में 20 दिसंबर 2023 को सदन में राज्यपाल के संदेश के आलोक में स्थानीयता परिभाषित करने संबंधित विधेयक पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन जी का स्पीच…
माननीय अध्यक्ष महोदय
आज हम लोग माननीय राज्यपाल महोदय के संदेश के आलोक में स्थानीयता परिभाषित करने संबंधी विधेयक पर चर्चा कर रहे हैं।
महोदय
1932 खतियान आधारित स्थानीयता इस राज्य के करोड़ों आदिवासी और मूलवासी की अस्मिता एवं पहचान जुड़ी हुई है एवं उनकी यह बहुप्रतीक्षित मांग रही है। उनकी भावना एवं आकांक्षा के अनुरूप पिछले वर्ष 11 नवम्बर (2022) को इस सदन ने ध्वनिमत से पारित कर इसे माननीय राज्यपाल महोदय के पास स्वीकृति हेतु भेजा था। दिशोम गुरू श्री शिबू सोरेन ने जब अलग राज्य की लम्बी लड़ाई लड़ी तो उस वक्त भी यहां के स्थानीय व्यक्तियों का झारखण्ड राज्य की संपदा और नौकरियों पर हक रहे, इसी जन भावना से वह लंबी लड़ाई लड़ी थी। परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि झारखण्ड बनने के बीस वर्षाें तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गयी।
अध्यक्ष महोदय
माननीय राज्यपाल महोदय ने अपने संदेश के साथ विद्वान अटाॅर्नी जनरल (Attorney General) का वैधिक परामर्श भी संलग्न किया है एवं तद्नुसार विधेयक पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है।
महोदय
विद्वान अटाॅर्नी जनरल (Attorney General) ने अपने परामर्श की कंडिका-9 से 15 में स्थानीयता की परिभाषा एवं उसके आधार पर सुविधाएं उपलब्ध कराने को पूरी तरह से जायज ठहराया है एवं राज्य के प्रयास की सराहना की है। परन्तु विधेयक की धारा-6 पर परामर्श हेतु विद्वान अटाॅर्नी जनरल (Attorney General) ने जिस Cheeblu Leela Prasad Reo बनाम आंध्रप्रदेश तथा सत्यजित कुमार बनाम झारखण्ड राज्य में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को अपना आधार बनाया है उस संबंध में, मैं आपके माध्यम से सदन को बताना चाहूंगा की ये दोनों ही फैसले वर्तमान विधेयक के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक नहीं है।
महोदय
उक्त दोनों आदेश में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि संविधान की पांचवीं अनुसूची की कंडिका-5 (1) में राज्यपाल को कानून बनाने अथवा उसमें संशोधन करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। संविधान के अनुच्छेद-309 के तहत नियम बनाने की यह शक्ति राज्य की विधानसभा को प्राप्त है। इसी कारण से हम लोगों ने विधेयक बनाने और इस पर विधान सभा की सहमति प्राप्त करने का एवं उसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने का निर्णय लिया।
अध्यक्ष महोदय
इसी प्रकार विद्वान अटाॅर्नी जनरल द्वारा जिन अन्य आदेशों का उल्लेख किया गया है उनमें से Indira Sahwney Vs Union of India का संबंध पिछड़े वर्ग को आरक्षण उपलब्ध कराने से है, General Manager दक्षिण रेलवे बनाम रंगाचार का संबंध ST/SC को प्रोन्नति में आरक्षण उपलब्ध कराने से है, अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ (रेलवे) बनाम भारत सरकार का संबंध ST/SC वर्ग के लिए आरक्षित पदों की रिक्ति को आगामी वर्षों में Carry forward करने से है एवं State of Kerala Vs. N. M Thomas का संबंध ST/SC श्रेणी के लोगों को प्रोन्नति देने से है। जबकि इसके विपरित वर्तमान विधेयक का उद्देश्य स्थानीयता परिभाषित करना एवं उसके आधार पर स्थानीय को रोजगार सहित अन्य लाभ प्रदान करना है। इस प्रकार इन सभी मामलों में पारित आदेश का वर्तमान विधेयक से किसी प्रकार का संबंध स्थापित नहीं होता है। यहां उल्लेखनीय है कि विद्वान अटाॅर्नी जनरल ( Attorney General) ने अपने परामर्श में यह भी उल्लेख नहीं किया है कि कई राज्यों के द्वारा विभिन्न वर्गों को 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण उपलब्ध कराने का प्रावधान भी नौवीं अनुसूची में शामिल कर लिए जाने के फलस्वरूप Judicial Review से सुरक्षित हो चुका है।
अध्यक्ष महोदय
हम लोगों ने भी SC/ST एवं पिछड़े श्रेणी के लोगों का आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 67 प्रतिशत करने से संबंधित विधेयक विधानसभा से पास कराकर माननीय राज्यपाल महोदय के पास भेजा हुआ है। मैं, पूरे सदन की ओर से आरक्षण बढ़ाने से संबंधित उक्त विधेयक पर भी शीघ्रताशीघ्र सहमति प्रदान करने का माननीय राज्यपाल से आग्रह करता हूं।
अध्यक्ष महोदय
विद्वान अटाॅर्नी जनरल (Attorney General) ने अपने परामर्श में वर्ग-4 के लिए तो विधेयक के प्रावधान को संवैधानिक प्रावधानों के अनुकूल पाया है, परंतु वर्ग 3 के मामलों में उनकी राय ऐसी नहीं है। जबकि वस्तुस्थिति यह है कि सभी प्रांतों में और राष्ट्रीय स्तर पर भी सामान्यतः वर्ग 3 और वर्ग 4 की श्रेणी के नौकरियों को एक श्रेणी में रखा जाता है।
अध्यक्ष महोदय
हमलोगों ने वर्तमान स्थानीयता संबंधित विधेयक को नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रावधान भी विधेयक में किया हुआ है। जिससे की इसे Judicial Review के विरूद्ध सुरक्षा कवच उपलब्ध हो सके। आश्चर्य की बात है कि विद्वान अटाॅर्नी जनरल (Attorney General) ने इस तथ्य को अपना परामर्श प्रदान करने में कहीं भी संज्ञान में नहीं लिया है। उपरोक्त सभी तथ्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि विद्वान अटाॅर्नी जनरल (Attorney General) द्वारा दिया गया परामर्श युक्तिसंगत एवं तर्कसंगत नहीं है।
अध्यक्ष महोदय
मैं आपके माध्यम से सदन को बताना चाहता हूं कि राज्य सरकार ने झारखण्ड राज्य के विद्वान महाधिवक्ता से इस विषय पर परामर्श प्राप्त किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से परामर्श दिया है कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को संसद के द्वारा नौंवी अनुसूची में शामिल कराया जा सकता है एवं तत्पश्चात् संविधान के अनुच्छेद 31(बी) के अन्तर्गत उस विधेयक को संविधान के पार्ट-3 अथवा यदि वह किसी न्यायालय के आदेश के प्रतिकुल भी हो तो भी उसे सुरक्षित रखा जा सकता है।
अतः अध्यक्ष महोदय
उपरोक्त के आलोक में वर्तमान विधेयक में किसी तरह के परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है और इसे वर्तमान स्वरूप में ही पुनः पारित कराने का आग्रह करता हूं